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________________ छतरिम संधि ३५ चूक गया हो। रात्रणके धराशायी होते ही, निशाचरोंके मन बैठ गये। महारथी राजाओंके प्राण सूख गये, राम-उक्ष्मण के सिरों पर देवताओंने फूल बरसाये ॥ १-२ ॥ [२] देवताओंने रामकी सेनाको साधुवाद दिया, विद्याके नम्र होते ही आदत होने लगी। इस अवसर इसी बीच, विभीषणका हाथ, मणिगणसे चमकती हुई अपनी छुरीके ऊपर गया। वह आत्महत्या करना ही चाह रहा था कि मानो मूर्छाने उसे थोड़ी देर के लिए रोक दिया, वह धरती पर अचेतन होकर गिर पड़ा। बड़ी कठिनाई से वह दुबारा उठा, उसकी बेदना बढ़ने लगी। पैर पकड़ कर, वह रो रहा था, "हे भाई, मुझे छोड़कर तुम कहाँ चले गये। हे भाई, मैंने मना किया था, तुम नहीं माने। तुम्हारा आचरण एकदम लोक विरुद्ध था । हे भाई, अपने सुकुमार शरीरको तुमने चक्रधारासे कैसे विदीर्ण किया। हे भाई, तुम इस समय खोटी नींद में सो रहे हो, सेज छोड़कर तुम धरतीपर सो रहे हो। तुम उपेक्षा क्यों कर रहे हो, मैं तुम्हारा चरण पकड़े हुए हूँ। मैं तुम्हारे सामने बैठा हूँ। हृदयके दो टुकड़े हो चुके हैं, हे आदरणीय, आलिंगन दीजिए" ॥१-९॥ [३] शोकसे व्याकुल होकर विभीषण विलाप करने लगा, “हे भाई, तुम नहीं डूबे, सारा कुटुम्ब ही डूब गया है। तुम नहीं जीते गये, त्रिभुवन ही जीत लिया गया। तुम नहीं मरे, वरन् तुम्हारे सब आश्रितजन ही मर गये हैं। तुम नहीं गिरे, बल्कि इन्द्र ही गिरा है। तुम्हारा मुक्कुट भग्न नहीं हुआ प्रत्युत मन्दराचल ही नष्ट हो गया। तुम्हारी दृष्टि नष्ट नहीं हुई, वरन् लंकानगरी ही नष्ट हो गयी । तुम्हारी वाणी नष्ट नहीं हुई प्रत्युत
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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