________________
परमवरित
रिउ-कर-विमुक्षु मण-पवण-घेउ । घण-धोर-घोसु पलमगिाउ || रणे धरवि ण समिद लक्षणेण । पहणन्ति असेस वितरपणेण ॥३॥ सुग्गीबु गएं राहट हलेण। सूलेग चिहीसणु पञ्चलेण ॥४॥ भामण्डलु पसल-असिवरेण । हणुवन्तु महन्से मोगगरेग ॥५ भगड विपर्वण कुट्टारएग। जल स वरि-वियारणेण ॥९॥ जम्बड झसेण फलिहण णीलु। कणएण विराहिउ विसम-सीलु ||७॥ कुम्तेण कुन्दु दहिमुदु धणेण । केण विण णिवारिंड पहरणेण ॥८॥ मजन्तु असेसाउह-सया। गं नुहिणु दहन्तु सरोरुहार ॥९॥ परिममिड वि-धारउ तरल-नगा। णं मेरह पासे हि माणु-विम्बु ।।१०।।
जं अपण मवन्सरे अजियङ भाणा-विहेड सु-कल सुजिह
तं श्रप्पगहि (1) समावरिउ । चाकुमारही करें चडिउ ||१||
[२२] ।। दुवई ॥ अं उत्पण्णु चक्कु सोमित्तिह तं सुर-णियह तोसिट।
दुन्दुहि दिषण मुक कुसुमाधि साहुकारु बीसिड ॥१॥ महिणन्टि लपलणु घाणरहि। 'जय पाद पर मङ्गल-रवेहि ॥२॥ चितवइ विहीसा जाय सङ्क। 'लइ पट्ट कज्नु उच्छिपण कक ॥३॥ मुउ राषणु सन्तइ सुह अजु । मन्दोयरि बिहब विण रज' ॥ पभणइ कुमार 'कर चित्तु धीरु । मुख सीय समापद खमह वोरु' ॥५॥ तो गहिय-चन्ददासाउहण । हारिड लक्ष दहमुहण ॥३॥ 'खा पहर पहरू कि फरहि खेत । तुहुँ एच सावलेड ॥॥