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पंचतरिम संधि
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भी बल समाप्त हो गया। शत्रुके हाथसे मुक्त, मन और पवनके तरह बेगशील, मेघकी तरह घोषवाला, और प्रलय सूर्यकी तरह तेजस्वी उस चकको जब लक्ष्मण नहीं झेल सका तो बाकी सब लोग उसपर फौरन आक्रमण करने लगे । सुग्रीवने गदासे, राघव ने हलसे, विभीषण ने शूलसे, भामण्डलने तीखी तलवारसे, हनुमान ने एक बड़े मोगरसे, अंगदने तीखे कुठारसे और नलने बैरीका विहारण करनेवाले चक्रसे, जम्बूकने झपसे, नीलने फलकसे, विराध विषमशीले, कुसे और मुखने घनसे । फिर भी हथियारसे कोई भी उसका निवा रण नहीं कर सका। सैकड़ों हथियार बरबाद हो गये, जैसे हिम सैकड़ों कमलोंको जला देता है। चंचल और ऊँचाई पर घूमता हुआ 'चक्र' तीन बार घूमा, मानां सुमेरु पर्वत के चारों ओर सूर्यका विम्ब घूमा हो । जो हम पूर्वजन्ममें कमाते हैं वह इस जन्म में अपने आप मिलता है। आज्ञाकारी अच्छी स्त्रीकी तरह वह चक्र कुमार लक्ष्मण के हाथ में आ गया | ॥१-११॥
[२२] कुमारके हाथ में चक्र के इस प्रकार आ जानेपर सुरसमूह सन्तुष्ट हो उठा। नगाड़े बज उठे । फूलोंकी वर्षा होने लगी, और जयध्वनिले आसमान गूँज उठा । वानरोंने लक्ष्मणका अभिनन्दन किया, 'जय, प्रसन्न होओ, बढ़ो' आदि आदि शब्दों से आशंकित होकर विभीषण सोच रहा था, 'आज कार्य नष्ट हुआ । टंका नगरी मिट जायगी। रावण मारा जायगा, सन्तति नष्ट हुई । मन्दोदरी, वैभव और राज्य सब कुछ नष्ट हुआ ।' तब कुमारने कहा - 'अपने हृदय में धीरज धारण करो, सोता अर्पित करने पर रावणको क्षमा कर दूँगा । इसके बाद चन्द्रहास कृपाण धारण करनेवाले रावणने लक्ष्मणको ललकारा, 'ले, कर प्रहार, कर प्रहार, देर क्यों करता