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पंचहस रिमो संधि
२५ ऐसा मालूम होता था मानो साँपने साँपको पकड़ लिया हो। हाथों और सिरोंसे, कुमार लक्ष्मणने धरती मण्डलको पाट दिया मानो कुमार लक्ष्मणने कोमल नाल और कमल खोटखोटकर युद्धके देवताकी अर्चा की हो ॥१-१०॥
[२०] दोनोंको लड़ते हुए दस दिन बीत गये, फिर भी युद्धका फैसला नहीं हो सका । इतने में माया रावणने ( बहुरूपिणी वियाने ) रावणसे कह।, - यदि तुम जीवित रहना चाहते हो, तो जो और विद्या जानते हो, उससे काम लो, लंकेश्वर । मुझमें वस इतनी ही शक्ति है ।" यह सुनकर, रावण विकलतासे स्तंभित रह गया। उसने अपना प्रलय सूर्य के समान चमकता हुआ चक्र हाथ में ले लिया। एक हजार या उसकी रक्षा कर रहे थे । वह विषधर, मनुष्य और देवताओंमें त्रास उत्पन्न कर देता था । यह अत्यन्त दुर्दशनीय और भयानक था । उसकी धार तेज थी । वह मोतियोंकी मालाके आकारका था। फूलों
और चन्दनसे चर्चित चक्रको रावणने इस प्रकार दिखाया मानो अपने नाशका ही प्रदर्शन किया हो। उसे देखते ही आकाशके देवता भाग गये। वानर भी हटकर दूर जा खड़े हुए । तब कुमार लक्ष्मणने निशाचरराज रावणसे कहा, "तुमने जिस प्रतापसे इन्द्रको पकड़ा था, उसी प्रतापसे, हे कठोर स्वभाव रावण, तुम अपना चक मुझपर चलाओ । देर क्यों कर रहे हो।" लक्ष्मणके दुर्वचनोंसे उत्तेजित रावणने हाथमें चक उठा लिया । उसने जब उसे आकाशमें घुमाया तो सारा संसार घूम गया ।।१-१०॥
[२१] तब लक्ष्मीको धारण करनेवाले रावणने छिमनख अपना चक्र पलाया। परन्तु वीर, तोमर और वाणोंसे उसका