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________________ 2 पउमचरित घत्ता माहि-मण्डलु मण्डिड कर-सिर हिं छुद्ध खुखिपहि स-कोमलेहि। रण-वेबय अञ्चिय लक्षणेण गाई स-णा हिं उप्पले हि॥10॥ [२.] ॥ दुबई ॥ गय इस दिवस विहि मि जुमन्तहँ तो वि ग णिष्टियं रणे । माया रावण कोलिन 'जह जीवेण कारण ||१|| तो जं जागहि न करें दवत्ति। सकेसर महु एसत्रिय सन्ति' ॥२२॥ स-विलक्खु रक्स्यु सयमेव थक्कु । पलयक-सम-पहलइउ चक्कु ॥३॥ परिकाश जएस-सडाम जल। दिमाहरणार-सुरतर-णिय-तासु ||१|| दुपरिसणु मीसणु णिसिय-घारु । मुत्ताहल-मालामालियारु ।।५।। सकुसुम-चन्दण-पश्चिक्कियङ्ग। णिय-णासु गाई दरिसिज रहा ।।६।। तं गिरवि गट गहें सुरखरा वि | भोसरवि दूरै थिय घागरा वि ।। तो बुसु कुमार णिसिमरिन्दु । 'पइँ जेण पया धरित इन्दु ।।४। लाइ तेण पयावे दुटु-माव । मुऍ चा चिरावहि काई पाव' ॥९॥ घसा दुश्वयणदीवि दहमुहँण कर रहा उग्गामियउ । नहूँ तेण ममामिम्सऍण जगु जै सम्बु गं मामिया ॥१॥ [३५] ।। दुवई । तो लपछीहरेण छिग्ण समारम्भिउ रहायं । तीरिप-सोमरहिं पाराएँ हि सही वि पहा समागवं ॥१॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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