SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ এমখৰি सन्चो वि अगो गेण्हा णिय-वाय-विहत-दग्व सन्ताम् । सिहुअण-सयम्भुणा पुणु गहियं सुकनका सन्ताम् ।।३।। लिहुण-सयम्भुमेकं मोत्तूण सयम्भु-कम्ब-मयरहरो । की तरह गन्तुमन्तं मझे निस्सेस-गीसाणं ॥१२॥ इस चारू पोमचरियं सयम्भुपवेण रहये ( यम) समतं । तिभण-सयम्भुणा तं समाणियं परिसमातमिणं ।।१।। 'चेष्टितमयनं परितं करणं चारित्रमित्यमी यम्सन्दाः । पर्याया रामायणमित्युक्तं तेन चेष्टितं रामस्म ॥१४॥ बाधयति श्रुगोति जनस्तस्पायुद्धविमीयते पुण्यं च । माकृष्ट-खा-इस्तो रिपुरपि न करोति रसुपनाममेति ॥१५॥ माउर-सुभ-सिरिकहराय-तणय-कय-पोमचरिय-भबसेसं । संपुग्ण संपुष्णं वन्दहलो लहड्व संपुष्णं ॥१॥ गोहम्द-मयण-सुयणत-विरहयं वन्दह-पटम-तणपस्स । बमलदाएँ तिहुमण-सत्यम्भुणा रइयं (?) महप्पयं ॥१७॥ बन्दइय-पाग-सिरिपाक-पहुइ-मययण-गण-समूहस्स। भारोगत-समिद्धी-सन्ति-सुई होउ सम्बस्स ||१८॥ सत्त-महासग्गङ्गी ति-यण-मूसा सु-रामकह-कण्णा । सिहभण-सयम्भु-अणिया परिणड वन्दइय-मण-तणयं ||
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy