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________________ प्रशस्ति गाथा श्री विद्याधर काण्डमें बीसके लगभग सन्धियाँ हैं । अयोध्याकाण्डमें गिनतीकी बाईस सन्धियाँ हैं।शा सुन्दर काण्डमें चौदह और युद्ध काण्डमें इक्कीस । उत्तरकाण्डमें तेरह सन्धियाँ हैं इस प्रकार कुल नब्बे ॥२|| दूसरा नहीं, त्रिभुवन स्वयंभू ही अकेला कविराज चक्रवर्तीसे ऐसा पुत्र उत्पन्न हुआ जिसने पाचरितके चूडामणिके समान उसके शेषमागको पूरा किया ॥३॥ विजयशेष कविराजका संसार में अशेष यश फैलाया त्रिभुवन स्वयंभूने, पद्मचरितका शेष भाग लिखकर ।।४।। त्रिभुवन स्वयंभू धवलके गुणका वर्णन कौन जगमें कर सकता है।बालक होते हुए भी जिसने स्वयंभू कविके काव्यभारको उठा लिया ॥५|त्रिभुवन स्वयंभूधवल जिन तीर्थ में काव्यभारको वहन करता रहे। इसकी सन्धियाँ व्याकरणसे दृढ़ हैं।यह आगमका अंगभूत है इसके पद प्रमाणोंसे पुष्ट हैं। ॥६|| चतुर्मुख और स्वयंभूदेवकी वाणीका अर्थ जाननेवाले त्रिभुवन स्वयंभू द्वारा रचित पंचमी चरित एक महान् आश्चर्य है. ||७|| सभी पण्डित पिंजरबद्ध सुएकी भाँति पढ़े हुए अक्षरोंको सीखते, हैं परन्तु कविराजका पुत्र श्रुतके समान श्रुतिके गर्भसे उत्पन्न हुआ ॥ श्रीस्वयंभूदेवका पुत्र त्रिभुवन स्वयंभू यदि न होता तो काव्य कुल और कविताका उनके बाद कौन उद्धार करता ॥९॥ यदि न हुआ होता · छन्दचूड़ामणि त्रिभुवन स्वयंभू का छोटा बेटा तो पद्धडिया काव्य श्रीपंचमीकी
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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