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[प्रशस्तिगाथा: ]
सिरि-विज्जाहर-कण्डे संधीभो होन्न्ति बीस परिमाणा । उज्मा कण्णामि तहा वावीस मुणेह गणणा ॥१॥ चउदह सुन्दर-कण्डे एक्काहिय-वीस झुन्झ-कपडे य । उत्सर-कण्डे तेरह सन्धीओ शवइ सम्बाउ ॥२॥
तिहुमण-सयम्भु नवा एको काराय-पकिणुप्पपणी । पउमरियस्स चूकामणि ख सेस कार्य जेग ।।३।। कहायस्स विजय सेसियस्ल विस्थारिभो जसो भुवणे । तिहुमण-सयम्भुणा पोमचरिय सेसेण हिस्सेसो ॥५॥ तिहुमण-सयम्भु-धवलस्स को गुणे वणि जएतरइ । चालेण घि जेण सयम्भुकम्ध-मारो समुम्बूढो ॥५॥ वापरण-दढ-खन्धो भागम-मानो पमाण-चिय-पत्रो। तिहुमण-सयम्भु-धवको जिण-तिस्थे वहन काव-मर ॥३॥
घउमुइ-सयम्भुएचाण वाणियस्थं अचक्खमाणेण । तिहुश्रण-सयम्भु-राइयं पञ्चमिचरियं मारियं ॥७] सब्वे दि सुभा पार-सुभ प पढियक्सरा, सिक्खन्ति । कामयस्स सुलो पुग सुय म्ब सुब-गरम-संभूलो ॥८॥ सिहुअण-सयम्भु भइ ण होन्तु (1) गन्दगो सिरि-सयम्भुदेवस्स । कम्वं कुलं कवितं तो पच्छा को समुसरह ॥१॥ जाग हुउ छन्दतामणिस्स तिहुमण-सयम्भु लहु-तणो । तो पदरिया-कम्बं सिरि-पमि को समारेड ॥१०॥