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________________ गवाहमो संधि ४. [१०] अहमिन्द्र महासुखका अनुभवकर उत्तम वैजयन्त स्वर्गसे आकर तुम उसके गणधर बनोगे और इस प्रकार मोक्ष प्राप्त करोगे। अम्भोजरथ जो कि पुराना लक्ष्मण है, जिसके नाम मात्रसे शत्रु काँपते हैं वह भी सुन्दर जन्मान्तरोंमें घूमता-फिरता निरन्तर जिनधर्मका ध्यान मनमें रखेगा और पूर्व विदेह के पुष्कर द्वीपमें शतपत्रध्वज नगरमें जन्म लेगा। वह भरतेश्वरके समान चक्रवर्ती होगा, फिर तीर्थका तीर्थकर होगा। मानसे वह कर्मकी धूलिको नष्ट करेगा और महान् निर्वाणपदको प्राप्त करेगा। सात बरस बीतनेपर मैं भी वही मसात कराँगा जहाँ भर बन्न भने-बढ़े मुनि सबसे निवास करते हैं ॥१-८॥ [११] भविष्यकालके जन्मोंका हाल सुनकर और मुनिवर रामको प्रणामकर सीतेन्द्र ने अपनी खूब निन्दा की, मनको बुरा. भला कहा। उसने जिनमन्दिरोंकी वन्दना की। तीर्थकरों के तपस्याके स्थान केवलनानकी उत्पसिके प्रदेश और दिव्यध्वनि और निर्वाणके स्थानोंकी अर्चा-पूजा और वन्दना की। उसके अनन्तर उसने अत्यन्त विशाल और ऊँचे पाँचों मन्दराचलोंकी प्रदक्षिणा की। फिर वह नन्दीश्वर द्वीप गया और वहाँ त्रिलोक प्रदीप जिन भगवानको स्तुति की। तदनन्तर कुरुक्षेत्रमें उसने अपने भाईकी खोज की और पत्नी सहित भामण्डलसे बातचीत की। रामके गुण-गणमें अनुरक्त वह फौरन अच्युत स्वर्ग में वापस पहुँच गया। वहाँ वह शुभभावनाओंसे युक्त हजारों देवताओंसे घिरा हुआ था । वहाँ बहुत समय तक अप्सराओंके साथ लीलापूर्वक रमण करता रहा ॥१-||
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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