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परामचरित
[१२] लवणास वि वि पहु-दिवसें हिं । णाणुप्पण णमिय बर-तिबसे हिं ॥१॥ कप-कम्म-करखय जाणा-तरुवरें। गम णिश्वाणहाँ पावा-महिहरे ||२|| बहु-काले पुणु इन्दह-मुणियरू। णिय सणु तेभोहामिय-दिणयह ॥३॥ देउल-धीतिमा कलाट । मानिसमा बिह सो तिह प्रपत-सुख-धागहों । गउ घणवाहणो वि णिवाणहाँ ।।५।। जसु केरउ. अञ्ज वि अक्षिणम्दह। छोउ महाहु तिस्थु पथम्दइ ।६।। कुम्भयपणु पुणु मासय-सोक्खहाँ। सो वि यह खेड्डु गउ मोक्खहीं ॥७
घचा गड रहुवाइ कहहि मि दिवसें हि तिहुश्रण-मणकगाराहरे। अजरामर-पुर-परिपाकहो पासु सया-महाराही ।।८।।
इय पोमचरिय-सेसे सयम्भुपवस्ल कह दि उपरिए । तिहुमण-सयम्भु-राहए राहव-णिवाण-पपमिण ॥
बन्दइ-आसिय-तिहुयण-सपम्भु-परिविरहयाम्म मह-कम् । योमरियस्स सेसे संपुरणी णवहमो सम्यो ।
॥पोमचरियं समत्तं ॥