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पउमचरित
[4] तं शिसुणे वि केवल पाण-धरु पमण सीराउहु मुणि-पत्ररु ।।१॥ 'भायणहि पुध्वं सुरगिरिहें जग-पायर-विजयाचह-पुरि ॥२॥ सम्मत्त-धीर-अवलम्वियहाँ। होसन्ति सुगन्द-कुहुम्वियहीं ॥३॥ रोहिणिहें गदमें दिन-कठिण-भुअ । तो अहदास-रिसिदास सुअ॥४॥ वहु-कालं वय-गुण-णियम-धर। होसन्ति सुरालऐं पुणु अमर ॥५॥ तस्थहीं चवेदि णिम्मल-विउले। होसन्ति पढीबा सहि में कुल ५६ ॥ दरियाविय घरविह-दाण-गुणु । हरि-खे थे वि होसन्ति पुणु ॥७॥ तेरथहीं वि पीय-जिण-धम्म-रस। होसन्ति सणय-कुमार तियस ।।८॥
घत्ता सायरई सत्र सुइ भुञ्ज वि चषणु कोप्पिणु सुरपुरिह । हासन्ति परीवा वेगिण वि ताहे जे विजयावह-पुरिह ॥९||
[१] जस-धणहाँ कुमार-कित्ति-पहुई। गम्मकमन्सर लच्छी-बहुः ॥ १।। होसन्ति मणि पहाण सुय । जयकम्त-जयप्पाह-णाम-जुभ ॥ २॥ तहि धरॅवि धोर-तव-मार-धुर। सप्तम सग्ग होसन्ति सुर ।।३।। तहि काले सयल-णिहिनयणबई । सो मरहे हवेसहि चावडा छन्तव-सग्गही चवेषि विषुह । होसन्ति वे वि तउ अहह ॥५॥ णाम इन्दरहम्मोयाह । तियसह वि रणक्षण दुविसह ॥६॥ स्यणस्य णय रनु करें वि। पच्छऍ पुणु दुद्धरु सउ परेंचि 10॥ पार्वेवि समाहि मुहुँ विमल-मणु । होएसहि वेजयन्ते सुमणु ॥४॥ इन्दरहु वि जो चिरु दहश्यणु । जे घसिकिउ णीसेसु वि भवणु ॥९॥
घसा
सो मणुनत्तण देवतणे हि श्रदविह-कम्म-विणियारण
काहि मि म हि भदेवि गरु । होसह काले तित्यया ॥१॥