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________________ णच इमो संधि [१] स्थान-स्थानपर उसने बड़े-बड़े सीमाहीन सुन्दर उद्यान निर्मित कर दिये । स्थान-स्थानपर धनधान्यसे भरपूर नगर थे। गोधन और गोरससे परिपूर्ण गोठ थे। स्थान-स्थान पर जिनगृह और देवालय थे, मानो चूने से पुते शिशु हों, स्थानस्थानपर नगरतुल्य बड़े-बड़े गाँव थे। स्थान-स्थानपर सुन्दर उद्यान थे। स्थान-स्थानपर पोखर और सरोवर थे। बाधड़ी, कुएँ, तालाब और लतागृह थे। स्थान-स्थानपर सुन्दर जलाशय थे। स्थान-स्थानपर ही, मलाई, घी और दूध था। स्थान-स्थानपर घान्य और अच्छे फल थे और था अत्यन्त मीठा ईखका रस । स्थान-स्थानपर जननयनोंके लिए आनन्ददायक भन्यलोक था जो जिनेन्द्र भगवान् की वन्दना कर रहा था। इस प्रकार आधे पलमें नगरका निर्माण कर क्षमा और संयमका भाव दिखाकर वह परिचर्या में लीन हो गया। अन्त में शुभध्यान और मुणोसे अलंकृत भामण्डलने महामुनियोंको आहारदान दिया ॥१-२|| [७] इसी भाँति और दूसरे मुनियोंको उसने पारण कर. बायो। उसने इसी प्रकार नाना प्रदेशों, दुर्गम द्वीपों, समुद्री देशों, भरत प्रमुख क्षेत्रों, गिरिगुहाओं, काननों, जिनतीथों, निर्जननिष्प्राण प्रदेशों और विषम प्रवेशवाले देशोंमें उसने मुनियोको पारणा करवाया। इसके फलसे वह मरकर अपनी पत्नीके साथ उत्तम भोगभूमिमें जाकर उत्पन्न हुआ। "तुम्हारा पहला सगा जननेत्र सुन्दरभाई इस समय वहींपर है; उसका शरीर तीन कोश प्रमाण है और आयु तीन पल्य की है।" इन शब्दोंको सुनकर सीतेन्द्रने दुबारा आनना के साथ पूछा, "लक्ष्मण और राषण ( दुर्बुद्धि ) दोनोंने दुर्गति प्राप्त की है। बताइये कि दोनोंके दुर्गतिसे निकलनेपर उनका क्या होगा ? क्या मैं होऊँगी और रावण क्या होगा ? ॥१-९॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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