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परमचरिड
[१] णिम्मियाई घिउलाई अ-पमाणई। थामें थामें मणहर उमाई ||३॥ थामें थामें धण-कण-जुभ-णपरहै । गोट्टई गोहण-गोरस-पडरई ।।२।। थामें थाम जिणहर-देवउक है। डिग्मइँ गाई मह छुह-बहुलइँ ॥६॥ धामें थामें पहु-गाम-पुरोवम । थामें थामें आराम मणोरम ॥४॥ थामें थामें पोक्स्परांणड सरवर । वावी-कूव-सहाय लयाहर ।।५॥ थामें थामें णिम्भक णिक पीरइँ। महिय-ससाइ-सिसिर-षिय-खीरई ॥६॥ थामें थामें सालिउ फल-सारठ। इक्खु-महारसु भइ-गुलियारउ ॥७॥ यामें थामें जण-णय, शु: पिछोर निरापदणु
पत्ता तं करवि एव णिविसर्वेण परिया-गय, खम-दम-दरिसि । सकार-गुणालकरिऍण तें भुभाषिय परम रिसि ।।९।।
जिह ते सिंह अवर वि बहु-देसहि । दुग्गम-दीव-समुद्रे सहि ॥१॥ मरह-पमुह-खेत्तेहि गिरि-विवरहि । काणणेहि जिण-विस्य हि पवहिर पिणण-णिपाणिय-दुपवेस हि। मुणि पाराषिय विसम-पवेस हि ।।३।। तेण फळे भरेवि स-कम्त। उसम-भोग-भूमि सम्पत्तड ||४|| तहिं अच्छा जण-गयण-मणोहरु। तुह केरउ चिर-पढम-सहोयरु ॥५॥ दण्ड-सटि-सय-तणु-परिमाण । सिण्णि-पल-परमाउ-समाण ॥९॥ तपिणतुणेवि प्रयणु सिय-इन्हें (1)। पुणु विपच्छिा गुरु-आणन्दें ॥७॥ 'पारायणु दस-कन्धरु दुम्मइ । पिमा वि जण सम्पाइस-दुग्गा ॥६॥
घसा
दुरियहाँ अकमाणे विगिग्गै वि कहें कि होसह महुमहश् । और मि मचारा होसम को होएसइ दहमपशु' ।