________________
३४.
परमचरित
तो षण-क्षण-घोरोक्ति दिन्नु। सुरघणु-पईह-गलवन्तु ॥३॥ अइ-धवल-पलाया-पन्ति दातु। जलधारा-चोरणि केसराहु ॥२॥ श्रीसारिय-सूरायव-कर। मिदारिय-गिम्म-महा-मया ॥३॥ हरिवर-वरहिण-रव-रुक्षमाणु । फुलस्त-पीम-ग्रहरहि समाणु ॥४॥ जल-परिय-सरिणि-पवाह-चलणु। वावी-तलाय सर-णियर-सवणु ।। ५५ पचढन्त-महरह-रून्द घयण। दुत्तार-सङ्क-विपिछडू-गयणु ॥३ घक-विज-कहानिय-दीह-जीहु । सम्पाइयउ वासारस-सी ॥७॥
पत्ता हि PिE THEM'वयाएँ महा-वण मय-रहिय । कर-पायय-मूलें सु-विस्थ सिणिण वि जोगु कएवि थिय ॥४॥
तहि अवसर मिरिमाणि -कन्हैं। उझारि गयणकण जन्तें ॥१॥ जणयहाँ णन्दणेग विस्थाएं। गोवि चिन्तिउ बिणय-सहाए ॥२॥ ऍट महन्तु भच्चरित मनोहर । कहि वालुय-समृद्दु कहि मुगिवर ॥३ कहि भव-पहु कहिँ सिद्ध-भडारा । कहि अ-णिउणु कहि गुण-सारा ॥ कहि देसिड कहिं वर-णिहि-रयण है । कहि दुजणु कहिं सुन्दा-घयण ॥५॥ कहि दुग्गन्ध-नण्णु कहि महुपर। कहि मह-गरम-भूमि कहि सुरवर | दूर-मग्दु कहिं कहि सु-पहाण। तव-परित-वय-दमण-णाम ॥७॥ मह जामिय-कासासण्णा। महु पुण्णोदएण सम्पण्णा' ॥८॥
घसा
ऍड मामलण वियप वि वर-विजा-वलेण स्व-देसउ
भवासण्णउ पय-पउह। कि मायामा परम-पुरु ॥॥