SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचहत्तरिमो संधि जब वे आहत हुए, उसने चार उत्पन्न कर दिये। जब वे चारों आहत हुए तो वे आठ हो गये। फिर आठसे सोलह और सोलह से बत्तीस, इसी द्विगुणित क्रममें बहुरूपिणी विधाने विविध रूपोंमें टिश्चाई पड़नेवाले रामणोली एक अक्षौहिणी सेना ही उत्पन्न कर दी ।। ९-१०॥ [१७] जल, थल, आकाश-छत्र, ध्वज, तोरण, पीछे और आगे सब तरफ रावण ही रावण दिखाई देते थे। तब कुमार लक्ष्मण ने मायाका शामक तीर चलाया । उस तीर के प्रभाषसे बहुरूपिणी विद्या, केवल एक रावण होकर स्थित हो गयी। अब उसने अनन्त तीरों नाराचों वावल्ल भालों कणिकाओं आदि तीरोंसे आक्रमण किया, परन्तु लक्ष्मणने उसे भी छिन्न-भिन्न कर विया । उसका रथ नष्ट कर उसकी बलि दसों दिशाओं में अखेर दी। रावण दूसरे रथ में बैठ ही रहा था कि लक्ष्मणने खुरपेसे आक्रमण कर उसका सिर काट डाला, मानो हंसने कमलनाल तोड़ दी हो, उसकी जीभ चंचल थी, वह विकट दाढ़ीसे भयंकर दीख पड़ता था। उसका मुख कुछ पुकार सा रहा था, नेत्रोंसे आगके कण बरस रहे थे। उसका भाल उठी हुई भौंहोंसे विकराल विस्ताई देता था। गाल कर रहे थे और दादी हिल रही थी। मुकुट सहित उनका सिर पट्टसे अलंकृत था। वह चमकते हुए कुण्डलोंसे शोभित था । वह ऐसा लगता था, मानो चन्द्र और सूर्यमण्डलोंके साथ मेरु पर्वतका शिखर गिर पड़ा हो ॥१-१०॥ [१८] इतने में दुश्मनके शरीरसे दो और सिर निकल आये। उद्धट भौंहोंसे भयंकर वे कह रहे थे, "मारो मारो, प्रहार करो, प्रहार करो।" कोलाहल करते हुए उन सिरोंको भी लक्ष्मणने
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy