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________________ २४ ते पहय चयारि सोध्थरन्ति । पउमचरिङ पपिय चयारिवि अट्ट । ति ॥ ९ ॥ धत्ता सो पत्तोस वूणक्रमेण विविह रूय-दरिसावणहुँ । चहुरुविण विजऍ निम्मविय रणें अक्षौणि रावणहुँ ॥ १० ॥ सिरु स-मउड पट्ट - विहूलियत णं मेरु-सिङ्ग सधैं विडिय [ १७ ] || दुबई ॥ जलें थलें गयणे कत्ते घएँ तोरणें पच्छ पुरे षि रावणो । तो लच्छीवरेण सह मेल्लिउ माया उवसमावणो || ११| तह सों पहावे विज पर उत्थरि भणहि सरबरेहिं । वावरलेहिं महलेहिं कणिएहिं । सोमित्ति से सर-जालु टिष्णु 1 अण्ण रहवरें आरहई जान | णं हंसें तोषि आरणालु । कह कह कहन्तु लखक- चयणु । उमड-मिउडा भरिय मालु | 9 fra एक्कु दसाणु होवि णवर || २ || पाराएँहि तीरे हि तोमरेहि ॥ ३ ॥ अवरहि मि असेस हि वणिहिं ॥४॥ रवि पुशुबलि दिसहिँ दिष्णु॥५॥ सिरुषि खुरु छिष्णु ताव ॥ ६ ॥ सल- -जी बियड-दाढा करालु || || जालोलि फुलिङ्ग - मुअम्स - जयणु ॥ ८ ॥ कम्पिर-कषोल्लु वल-दाढियालु ॥ ९ ॥ घता सहद्द फुरन्ते हि कुहिँ चन्द- दिवायर मण्डले हिँ ॥५०॥ [14] || दुबई | ताव समुग्याइँ रिठ-देहही अण्ण हूँ बेणि सीखई । 'मरु मरु' 'पहरु पहरू' पमणन्ताएँ उमड 3-faafz-shog ||1||
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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