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ते पहय चयारि सोध्थरन्ति ।
पउमचरिङ
पपिय चयारिवि अट्ट । ति ॥ ९ ॥
धत्ता
सो पत्तोस वूणक्रमेण विविह रूय-दरिसावणहुँ । चहुरुविण विजऍ निम्मविय रणें अक्षौणि रावणहुँ ॥ १० ॥
सिरु स-मउड पट्ट - विहूलियत णं मेरु-सिङ्ग सधैं विडिय
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|| दुबई ॥ जलें थलें गयणे कत्ते घएँ तोरणें पच्छ पुरे षि रावणो । तो लच्छीवरेण सह मेल्लिउ माया उवसमावणो || ११|
तह सों पहावे विज पर उत्थरि भणहि सरबरेहिं । वावरलेहिं महलेहिं कणिएहिं । सोमित्ति से सर-जालु टिष्णु 1 अण्ण रहवरें आरहई जान | णं हंसें तोषि आरणालु । कह कह कहन्तु लखक- चयणु । उमड-मिउडा भरिय मालु |
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fra एक्कु दसाणु होवि णवर || २ || पाराएँहि तीरे हि तोमरेहि ॥ ३ ॥ अवरहि मि असेस हि वणिहिं ॥४॥ रवि पुशुबलि दिसहिँ दिष्णु॥५॥ सिरुषि खुरु छिष्णु ताव ॥ ६ ॥ सल- -जी बियड-दाढा करालु || || जालोलि फुलिङ्ग - मुअम्स - जयणु ॥ ८ ॥ कम्पिर-कषोल्लु वल-दाढियालु ॥ ९ ॥
घता
सहद्द फुरन्ते हि कुहिँ चन्द- दिवायर मण्डले हिँ ॥५०॥
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|| दुबई | ताव समुग्याइँ रिठ-देहही अण्ण हूँ बेणि सीखई ।
'मरु मरु' 'पहरु पहरू' पमणन्ताएँ उमड
3-faafz-shog ||1||