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सब उपाय कर लिये पर वह उन्हें ले नहीं जा सका। उसका सब आनन्द किरकिरा हो गया। अथवा संसार में जो मनुष्य जहाँ जो सुख-दुःख पाना है, वे उसे स्वयं भोगने पड़ते हैं, उसका प्रतिकार कर सकना किसके लिए सम्भव है। किसकी शक्ति है कि उसकी परिरक्षा कर सके। वे दोनों दुःखोंसे अत्यन्त सन्तप्त हो उठे और इस प्रकार बातें करते हुए काँप उठे। उन्होंने कहा, “हे दयावर इन्द्र, तुम मुझे कुछ ऐसा उपदेश दो, जिससे मुझे बार-बार नरक गतिका दुःख न उठाना पड़े” ।।१-११।।
[१२] तब उसने कहा, "यदि तुम मेरी बात मानते हो तो सम्यक दर्शन स्वीकार कर लो, जो तीनों लोकों में प्रसिद्ध और परम पवित्र है, जो अत्यन्त दुर्लभ पुण्य पवित्र और शुद्ध है, जो कल्याण तत्त्व और कर्मोंका नाशक है, संसार नाशक जिसे अभव्य जीव अंगीकार नहीं कर सकते, जिसका व्याख्यान परम तीर्थंकरोंने किया और सुर-नर और नागोंने जिसकी उपासना की । जो सुन्दर है और समय आनेपर जीवको बोध देता है और शाश्वत शिव स्थान में ले जाता है।" यह सुनकर उनका डर दूर हो गया और उन्होंने सम्यक दर्शन स्वीकार कर लिया | तब सीतेन्द्र सशंक उस स्थान पर गया जहाँ पर केवलज्ञानी राम विद्यमान थे। उसने समवसरण के भीतर प्रवेश कर भक्तिसे बार-बार रामकी बन्दना की। उसने कहा, "मुझे परमेश्वरको शरण मिले, ऐसा कीजिए जिससे मैं जरा और मरण का छेदन कर सकूँ ||१९||
[१३] पण्डितोंमें तुम्हीं एक पण्डित हो, शूरोंमें एक शूर और गुणियों में एक गुणी । ज्ञानरूपी अग्निसे जिन्होंने संसारकी चार गतियोंके भयावने जंगलको जला दिया। जिन्होंने उत्तम