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________________ १६४ उत्सम लेस-तिसूलें दुबरु । जें किउ मोह-वहरि सय-सका ॥३॥ दिव-महम्स-बहरगहों पाखिड़। जेण णेह-णाम मि पिण्णासिउ ॥३॥ भण्णु वि एउ काह तब जुत्ता। सिव-पउ एजह वि विडता ॥५॥ सो वि कि मई मुवि जाइज्वह। आवमि जेम हर मि तह किम्बई' ॥६ पभणह मुणिवरिन्दु 'सुणे सुन्दर । दुई पमायहि राज पुरन्दर ५७।। जिहि पगासिट मोक्नु वि-रायहीं । कम्म-वन्धु दिदु छोइ स-रायहाँ' पत्ता इप-बयणेहि बिमळ-मणेण अलि -उल-जुएँ हि । सीएम् राम-मुपिन्दु णमिट तय म्भु ऐं हि ।। इय-पोमचरिय-सेसे सयम्भुए वस्ल कह दि जरिए। सिहुमण-सयम्भु-हए केवल-गाणुप्पत्ति-पव्वमिणं ॥ इय पुस्य महाकावे बन्दा-भासिय-सयम्भु-सणय-कए। रामायणस्स सेसे एसो सम्गो वासीमो॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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