________________
२१२
पउमरिट मह जहि जेण जेव पावेव। सुहु व दुहु व तिहुमणे मुझेबद्ध तं समत्थु को विणिधारेवएँ। सासु सत्ति परिरक्ष करवएँ ॥५॥ पुण वह-दुक्खाणल-सन्तत्ता। वे वि चवम्ति एव देवन्ता || 2011
'उबएसु दगावर किं पि जे पुणु वि ण पाघहुँ एह
कहें गिब्याग-वइ । भीसण णस्य-गई' ।११।।
[१] रोग वि पतु 'जह करहाँ धयणु। तो लेख तरिड सम्मत्त रयणु ॥१॥ जं परमुत्तमु तिहुअणे पसिद्ध । मह-दुलहु पुण्ण-पचित्तु सुद्ध ॥२॥ जं कम्म-महणु कल्लाण-तसु । दुग्णेउ अमबह भव-मयन्तु । जं कहिउ परम-तिस्थरहि। परिपुजिट सुर-गर-विसहरहि ।।। जे सुन्दरु कालें वोहि वेह। सासय-सिन-थाणु पहाणु णेई' ५५।। इय-अयणे हिं दजिमय-भएहि। सम्मत्तु विहि मि परिवषणु तेहि ११६|| गज सीया-हरि वि स-सङ्कु तेरथु । वलएज स-केवल-पाणु जेत्धु ॥५॥ समसरणन्भन्तरें पइसरषि । भत्तिएँ पुणु पुणु वन्दण कोवि ।।८॥
वोल्लगहुँ लग्गु 'महु होहि सिंह करें परिछिन्दमि (१)
घता
परमेसर-सरणु । जेम जरा-मरणु ।।१।।
[११] तुर्दू पर एक्कु बियछु वियाहुँ साहुँ सूरु गुण गुणदहुँ ।।१॥ जाण-मेसवाहणेंण मयावणु। जेण दळु मन-चडगइ-काणणु ।।२।।