________________
पउमचरित
दस-सय-सङ्घउ वर-मामिणड। पत्तउ स-विकास कामिणि ॥६॥ मण्णा मणहरू गायन्तिथा अण्णउ बीपड बायन्तियउ ॥७॥ अपणउ घउदिसें हिं गडन्तिया । सकल दिष्टि पयन्तियर |॥८॥ कुम-चश्चिक करन्तियउ। अण्पाज थगहरु दरिसस्तियउ ॥१||
धत्ता तोविभन्सि ( म ) उ गिम्मल माशु हय परिसह-धारि । थित पिच्चलु गमु मुणिन्तु
णावइ मेरूगरि ॥१०॥
बं केम वि दुरियन्वयकरासु। मणुदलित का राहव-मुणिवरासु ॥१॥ तं माह-मासे सिय-परखें परें। वारसि-दिणे मिसिह परस्थ-पहरें ॥२ घउ-पाइ-कम्म-जिणियाघमाणु। उप्पण्णु समुज्जलु परम-णाणु ॥3॥' खणे केवल चम्मुहें जाड सपल। गोपय-समु लोयाखोय-जुभालु ।।३।। सहसा पड-देव-णिकाउ भाउ । भइ-रूम-विहूइ अमर-राज ॥५|| किय मत्तिएँ बन्दण जाणवज्ज । घर केवल-णाणुप्पति-पुज्ज ||६|| सो ताव सयम्पह-शाम एवि। सोपन्दु वल इचण करेषि ||७|| पविउत्तमङ्ग सो भणह एव । 'म तुम्हहें अपणाणेण देव ॥4॥
पत्ता 'जो अविणय-बन्ते सुदङ गुरु अवराह किय । ते सपत खमेजहि सिग्घु तिहुमण-जण-गमिय' ।।९।।
[८] अप्पाणर गरह वि सय-बारउ । का वि समावि रामु मकारख । पुणु पुणु यादण-इत्ति कोपिशु । सोमिसिह गुण-गण सुमपिणु ॥२॥ परियोहणहि पथटु स्यम्पाहु । लधेकि पढम-गरब रयणप्पाहु । पुणु महकमें वि पुतवि-समरपहु। सम्पाइड सणेण वालयपहु ॥४॥