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णवासीमो संधि परीषह असह्य होते हैं, पाँच इन्द्रियों, सात भय, आठ अहकारोंको कौन सहन कर सकता है, जिन-तपस्याका अन्त किसने पाया, समय एक दिन इसे भी नष्ट कर देगा। यदि इस समय नहीं मानते तो कुछ दिन बाद तुम खुद अपने पर हँसोगे। इस संयमके संग्राममें पड़कर कितने ही मनुष्योंका अन्त हो गया ।।:-||
५] मेरे लिए ही आखिर तुमने समुद्रावर्त धनुषको चढ़ाया था। मेरे लिए ही तुमने सहस्रको मारा था, और किष्किंधा नरेशका उपकार किया था। मेरे लिए. ही तुमने हनुमानको दूत बनाकर भेजा था, उसने युद्ध में वायुधका काम तमाम किया था। मेरे लिए कोटिशिला उठायी गयी और आशाली विद्याका पत्तन किया गया, मेरे लिए नन्दनवन उजाड़ा गया और सैनिक सहित अक्षयकुमारका वध किया गया। मेरे कारण तुमने समुद्रको लाँघा और हंसरथ और सेतुका वध किया । मेरे ही कारण अंगदको भेजा गया, और युद्धमें हस्त प्रहस्तका वध किया गया । इन्द्रजीतको रणमें बाँधकर ले जाया गया, और लक्ष्मणको शक्तिसे आहत होना पड़ा। मेरे ही कारण लंकाधिपति रावण युद्ध में मारा गया। मैं वहीं सीता हूँ। हे राम, तुम मेरे साथ अविचल अनन्त समय तक राज्य करो ॥१-१) .
[) तुम्हारे देखते-देखते मैं, उपवनमें गयी, जहाँ मैंने तुरन्त दीक्षा ग्रहण की। वहाँ मैं बिहार कर रही थी कि एक विद्याधर कन्या मुझे यहाँ ले आयी। उसने कहा, "दया कर मुझे रामके दर्शन करा दो जिससे मैं पतिके रूपमें उनका वरण कर सकू, तुम्हारे साथ जाकर क्रीड़ा कर सकूँ।" इसी बीचमें उस इन्द्रने नाना अलंकारोंसे विभूषित दस सौ संख्य उत्तम स्त्रियाँ उत्पन्न कर