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________________ पावासीमो संघि ३११ स्वयं उठाया था। रामने तुरन्त उस शिलाकी तीन प्रदक्षिणा दी। हाथ ऊपर कर चे उस शिलाके ऊपर चढ़ गये, वे ऐसे लगते थे मानो डालों सहित वृक्ष किसी पहाड़की चोटीपर स्थित हो। उनके साथ सुग्रीवादि मुनियोंका समूह भी जिनेश्वरके ध्यानमें लीन हो गया ।। १-१०॥ महाकवि स्वयंभूसे किसी प्रकार अवशिष्ट, त्रिभुवनस्वयंभू द्वारा रचित पभचरितमें राघवसंन्यास नामका पर्व समास हुआ । वन्दइके आश्रित और कविराज स्वयंभूके छोटे पुत्र द्वारा कहे गये पागम के शेष [in या महासभा समास दुआ। नवासीकी संधि त्रिमुधन स्वयम्भूकी यह स्वच्छ काव्यधारा हमेशा जिनतीर्थमें बहती रहे। इस काव्यबन्धकी संधियाँ व्याकरणसे सुदृढ़ हैं, यह आगमका ही एक अंग है, और प्रत्येक पद प्रमाणोंसे समर्थित है। अफ्युत स्वर्गमें सीता देवी के जीवरूपी इन्द्रने अवधिज्ञानसे यह जान लिया था कि राम कहाँ पर है, वह यहाँसे तुरन्त उनके पास गया। [१] अपने जन्मान्तरोंकी याद कर, और यह जानकर कि जिनधर्मका कितना प्रभाव है, अच्युत स्वर्गका इन्द्र अपने मनमें सोचने लगा "मैंने अपने मनमें जान लिया है कि यह वही राम है, यह मनुष्य जन्ममें हमारा पति था। इसके छोटे भाई लक्ष्मण पक्रवर्ती थे। स्नेहसे व्याकुल होकर पह नरकने गया है,
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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