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অয়া उपरि पडेषि पम्बिय-वाहन गं सरुबरु गिरि-सिहर स-साउ । सुग्गीवाइ-मुणिन्द-गणेसरु थिट झायन्तु सयम्भु-जिणेसह ।।१०
इस पोम परिय-सेले सयम्भुपवस्स कह वि अपरिए । तिभण-समाभु-रइए राहब-णिक्षमण-पम्वमिणं ॥ वन्दह-आसिय-कराय-बच-लहु-बाजाय-वजरिए । रामायणस्स सेसे भट्ठासीमो इमो समो॥
[८६. गवासीमो संघि धापरण-दर-वसन्धो मागम-आनो पमाण-विपर-पभो। शिहुमण-सयम्भु-अवको जिण-तिस्थे पहाड कम्ब-मरं ।। वो भवहि जाणेवि सेल्थु राह मुणि थियउ। अजय-सग्गही सीएन्दु तस्वणे आइयउ || ऋषकं ॥
[.] णिमय-मबम्तराई सुमरेप्पिणु। मिण-धम्म) मिपहाउ मुणेपिणु ॥३॥ चिन्ता लक्षणे अनुभ-सुरवह। 'सो मई मणे जाणिक रहनदासा जो मशुश्रतों कन्तु महारउ । असु चकवा माह बहुआरउ ॥३॥ सो मन परवहाँगे उ। एह बि सही विमोएँ पसाइबर |