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________________ मटासीमो संधि की उत्पत्ति हो गयी। उन्होंने जान लिया कि लक्ष्मण कहाँपर उत्पन्न हुए हैं, यह भी जान लिया कि लक्ष्मणने जन्मजन्मान्तरोंमें उनके साथ क्या धर्ताध किया है। उन्होंने मजबूत दुष्कृतके आठ काँका नाश कर दिया । छठा उपवास समान किया ही था कि वह घूमते हुए वह धनकनक नामक देशमें पहुंचे। उसमें स्यदनस्थली नामका नगर है। उसके राजा प्रतिनन्दीश्वर ने भक्ति और प्रणामके साथ रामको पारणा कराया। देवदुन्दुभियोंने साधुवाद दिया। सुगन्धित हवा बहने लगी। अपार धनकी वृष्टि हुई । कुसुमजिलिके साथ और भी दूसरे पाँच अचरज हुए ॥ १-२॥ [१३] उन्होंने राजाको अनेक व्रत दिये। यह स्यन्दनस्थली नगर गये । इस प्रकार महामुनि राम धरतीपर विहार करने लगे, मानो प्रथम तीर्थकर आदिनाथ ही हों। महावीर रामने घोर तपश्चरण किया। मुनिकी भांति उनके मनमें धीरज बढ़ता जा रहा था, वह सिंहकी भाँति गजमांसाहार (माइमें एक बार भोजन, गजमांसका भोजन ) करते थे, चन्द्रमाकी भौसि सबसे अधिक शीतल थे | निम्न स्तरके नर्तककी भाँति वह रसरहित थे। साँपकी भाँति वह दूसरेके भवन में निवास करते थे । मोक्षके लिए (मुक्तिके लिए और छूटनेके लिए ) वह तीरकी भाँति अत्यन्त सरल ( सीधे ) थे। (छूटना, मुक्ति पाना ही, उनका एक मात्र लक्ष्य था), महागणी भाँति उनके शरीरसे मदयिन्दु (मद या अहंकार) झर रहे थे। इस प्रकार उन्होंने बहुत दिनों तक धरतीपर विहार किया, उसके बाद वे उस कोटिशिला प्रदेश में पहुंचे, जहाँसे करोड़ों मुनियोंने मुक्ति प्राप्त की है और जो तीनों लोकोंमें तीर्थभूमिके रूपमें विख्यात है, जिसे लक्ष्मणने अपने हाथोंसे
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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