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पउमचरित
परियाणिय-हरि-दष्पत्ति-था। सुमरिय-मय-भय-कय-गुण-गिहाणु ५ विडिय-दिन-दुनिय-कम्म-पासु । भइकन्त-पवर-छटोववासु ॥३॥ विहरम्नु पत्तु धण-कणय-पवरू। सन्दणधळिणामु पाटनणयरु ||७|| तहि पाराविड गामिय-सिरण। मत्तिएँ परिणन्दि-परेसरेण ॥८॥
पत्ता
सही सुर दुन्दुहि साहुचारउ मन्ध-बाउ वसु-परिसु अपार । कुसुमलिए समउ विरथरियर अस्थाका पञ्च वि अच्छरियई ॥१॥
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पुणु पहुहे अपोय. क्यइँ देवि । सं सन्दणयलि-पशु एवि (१) ॥१॥ चिहरइ महियल बलु-मुणिवरिन्दु । णं भासि पहिलउ जिण-वरिन्दु ॥२॥ तष-चरणु परइ अझ-घोरु वीरु। सहसउणु पबइ हिय ऍ धीरु ॥३॥ गय-मासाहारिउ ममत्रा च । सन्चोवरि सीयल उसुवह च ।।।। रम-रहिउ होण-गट्टावड व्य पर-मषण-णिवासिउ पापाज छ ||५|| मोक्सही अइ-उज्जउ लोडउच्च । पयलिय-मय-विन्दु महागड सत्र ॥२॥ बहु-दिणे हि ममेंवि महियलु असेसु । सम्पाइड कोटि-सिला-पएसु ॥७॥ मुणिवरह कोटि जहिं भासि सिद्ध । जा तित्य-भूमि तिहुअणे पसिद्ध ॥८॥ उद्धरिष-भुऍहि जा कपणेण। तहँ देवि ति-मामरि सक्खणेण ।।९।।