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सवय-सेठि आरुताँ आयहाँ । जिह मणु टलह ण होइ पहाड जिह वमाणि जायड़ सुरवरु । पुस मेचि अजिन्हें चि । पचवि मन्दर गर्वेषि सुरोइएँ । पुरु सुमित रहो हो ।
पुशु तहलोक
-ज- मामें ।
पचमश्वरिज
चिन्तन्तु एम सोड तं कोडि-सिला यलु पत्तु
॥५॥
सिंह करेमि इह शाण-सहाय घबलुनल वर केवळ जाणञ्च ॥ ६ ॥
मित्सु मणि मज्मणि-गणन्धकः ॥ ७ सब हूँ जिणं भव है जर्गे वन्देवि ८ जामि दीषु णन्दी सरु सोहऍ ॥ ॥ आषि - कोहि सम्मत जम्पनि सुक्ख हूँ सहुँ रामें ॥११
॥१०॥
तहि विपणें महावणें स्म्मे सुद जाणहरु घरेषि
घत्ता
आर इन्तरण | णिविसमम्लरेण ॥१२॥
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पुणु व-पासि तहिं विशु से
कर रखाणु सम्पह-देवें ॥१॥ जं अल-फुल- रिद्धि
जं वल पद- सोडिखउ । वं बहु-कोमल-कोम्पस-फल-दल | जं सोमक-मळ्यानिळ-चालित । जं साहारणिया-अरिवद ।
॥२॥ जं कल कोइरू-कुल- क्रिम - कळप लु ॥ ३ जंच-सहि वयवमाखित ॥४ जं कुसुम-रम- पुञ्ज पिरियठ ||५|| जं सुम-सबई(?) सु-किं.सुश्र - मस्बिर । जं वहुविह विहङ्ग-पंचश्चि ।। ६।। जं दस-दिसि वह पसरिय-परिमलु । तरु परमारम्धारिथ-महि
॥७॥ ||८||
अं सुरपुर-ठाण- समाणउ ।
सम्दरणम्-वण- अणुमा
घत्ता
मन्थरु गाइँ गड | राम पासु गउ || १