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पडमचरित जो पइँ पणिउ "भवसरु मुणेवि । वोहिनहि महूँ आयरु कुर्णवि" ||७|| सो हउँ किय-धोर-
स रशु। महिन्ये जर सुरुदि-तY ||jl अवहिएँ परियाणवि हरि-मरणु । भणु वि उद्धाइड बइरि-गणु ॥९|| इह आयउ अरहि किं करमि। तर सम्व-प्यारे उवगरमि' ||१०|| ते वयणु सुणेपिणु समइ बलु। 'ह बोशित मग्गु अराइ-बलु ||३१|| अप्पट दरिसिउ रिद्धी पहुँ। ण पहुच्चइ पण जै काइँ म ॥१२|| इय ययणे हि ते परिमुष्ट मणे। गय सग्गहों सुरवा वे वि षणे ।।१३।।
पत्ता पुणु परिहरै वि सोउ ल भट्टमु वासुएउ वलएवें। णिय स्खवहीं महियले मोयारिउ सरज-सरि सोर संकारिड ||१||
[1] सं रहेंवि सहस्र्थे महमहणु। पुशु पणिउ रामें सत्तुहणू ॥१॥ 'लह वरछ सहोयर रज्जु करें। रहु-कुल-सिरि-णव-बहु धरहि करें ।।र हउँ सयलु परिग्गड पारहरेंवि । तनु केमि सबोषणु पइसरे वि' ॥३॥ सं सुणे वि चवइ महुराहिवइ । 'जा सुहहँ गइ या महु पि गइ' ॥४॥ परियाणेवि पिछड़ वहाँ तणउ । अवलोइड सुर कषणहाँ तणउ ॥५॥ तहों सिर विणिवद्ध पटु पवह । सहसन्ति समप्पिउ रज-मरु ॥६॥ गम्पिणु विणिहर-धनगा-णिसिहें। सुखयहाँ पार्स चारण-रिसिह ।।७।। परिसेसें वि मोहु गुणमहउ। उप्पण्ण-घोहि बलु पबहउ ।।।