SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पजमचरित पत्ता भण्णु वि णिसुणही कहमि विससे साह कुसलु ते मुक किलेसें । वन परिंग्गह पयहि अलतिय जे जिण-पाय-मूलें दिक्सलिय' ।।१० [] पुणरधि एष घुस काकुत्थें । 'के तुम्हे अक्षही परमत्थे ॥१॥ के को इय रिद्धि पगासिन । रिनु साहणहाँ पयत्ति विणासिय' ॥२ सरहसु एक्कु पजम्पिड सुरषस् । किं सामिय बीसरियउ गहयरु ।।३।। तुज्य पट्टों चिरु दण्डय-वणे। जो अल्लीणु महारिसि-दसणे ॥४॥ सुह परिणिएँ जो कालिउ तालिब । णियय सीलम जिह पालिउ ॥५॥ सीयाहरणे समुषि गयणहाँ। जो अब्मिपित भासि दहवयणी ॥६ जासु मरन्तहाँ सुह-वारिय। पई चकार पश्च बचारिय ।।।। तुज्झु पसाणं रिद्धि-पसण्णा । सुरु माहन्द-सगों उपपणड ॥॥ घशा जो असन्त आसि उवयारिउ मघ-सायरें पहन्तु उद्धारित । दउँ सो देव जबाइ महाइड पटिउषयार करेषएँ भाइ' ॥९॥ [१] सो साय कियन्त-दंड वषह। किं मई चीसरित गराहिलह ।।३।। यो सेणाचइ तर होन्तु चिरू। सशक-महारण सहि थिरु ।।२।। जो पेसिस पई सहुँ मायरहीं। ससुहणहाँ समरे कियापरहों ।।३। जे वेवि महर पसम्ब-भुउ। हड रूषण-महपगड महु सुरक्षा जसु फेवलि-पासे गिरन्तरह। प्रायफ वि तुम्ह-मवन्तर ॥५॥ परियाणवि चड-इ-मवण-रु। सहसा वराड जाब पवर ।।।।
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy