________________
१२
वायवेण विशासित वारुणत्थु ।
सरहेण सीहु गरुडेण
निसियरु मिरुद्ध नारायणेण ।
सोसिव समुद्दु वाण | वर कण अनु मगोहरा | सचिण-विज्जाहर हुआउ । 'वदेहि सयम्बरें युक्तियाउ । जयपद व सिद्ध होहि ।
-
पउमचरित
सिद्धत्धु अन्धु म सम्भरें वि
तमि (?) धरिउ कुमारें एन्तु
वारण
फिट रिस् ॥ २ ॥
पचार
( शिशु धाः॥५॥
तमु णासि दियर -पहरणेण ॥४॥ तहिं अवसरे आयड हयलेण ॥५॥
सुर- करि कुम्भयल - पोहराड ॥ ६ ॥ माल-माला - कोमल-भुभाउ ॥ ७ ॥ कच्छीहर तुह कुछ उत्तिया ॥८॥ संणिलुषि हरिसिङ हरि-धिरोहि ||९ ॥
घत्ता
हुआ सणु
मुक्कु णिसायर-पाय र्गेण ।
विग्व-विणायण ॥१०॥
[ १६ ]
सोसियस-विन्द कन्दावणेण |
'दे वे आसु' भणन्ति आय । 'ज अट्ट दिवस भराहिया-लि । में सहल मणोरद्द करहि अज्जु । दहवयों केरव रूयु लेवि । उत्थरिय विज्ञ सहुँ लक्खणेश । दरिसाबिय विजऍ परभ माय ।
॥ दुबई ॥ जं जं किंपि पहरणं सुइ मिसायर व दसाणणी । तं तं सर-सएहिं विणिवारह अब वह ज्जे लक्षणो ॥१॥ वहुरूपि चिन्तिय राखणेण ॥२॥ मुद्द- कुहरें विणिमाय वहाँ वि वाय ॥३॥ बहु-मन्तर्हि थोसेंहिँ साहिया-सि ॥४॥ भू-गोयर-महिहरें होहि कज्जु ॥५॥ मायामय रहब होहि देवि ॥ ६ ॥ दोशविय तेण वि तक्वणेण ॥७॥ अथक रावण वेण्णि जा ||८||