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३.८
पउमरिज धष्णउ भरहु वि जे चतु रजु बोहण वि किउ परलोय-कनु ॥७॥ धण्णउ सेणाणि कियन्तवतु । जें मुणेषि भणागय (1) लइउ तत्तु । धण्या सीय विहय-कुगइ-पन्थ। गवि दिइ जाएँ पही अवस्थ ।।९।। धण्णउ हणुवन्तु वि जो गरूवें। ण विणिचिट इय-मोहन्ध-कूते १० धपणा छवगनुस हरि-सुआ वि। जे दिक्षालकिय णव-जुवा वि ॥११॥
पत्ता
हउँ बई पुणु पारण गएण विभपण बि लच्छीहरण मपण वि । करमि का वि अप्प-हिंय तणु कहाँ णिय-कों का होइ बढतणु' ॥११
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पुणु पुणु रहुकुक-गयणयल-चन्दु । परिचिन्तइ हियवएँ रामचन्दु ॥३॥ 'सबमन्ति कलत्तई मगहराई। छत्तई लमन्ति स-चामराई ।।२॥ लम्म बहु-बन्धव सयण-सत्थु । लमह प्रणाय-परिमाणु अस्थु ॥३॥ लामन्ति हत्यि रह तुरय पयर। अह-दुलहु बोहि-णिहाणु णवर' ! परियाणेवि वलु पडिबुद्ध एव। णियारिदि वे वि दरिसन्ति देव ॥५॥ सुरवहु-सङ्गीउ सुअन्ध-पवशु। अम्पाण-विमाणे हि अण्णु गयशु ॥६॥ 'भही रहुधइ कि गय-दिण-सुहेग' । शेण वि पवुत्तु वियसिय-मुहेण ।। चिरु पुष्ण-विहूणहाँ मन्च एन्थु । मगे मूवहाँ णिविसु वि सोक्स कैरधु ८ श्य मणुय-जम्में पर कुसलु बाहँ । जिण-सासणे अविचल मास जाह ॥ए