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पउमचरिउ
अम्हहिं सयक विगछियाहिमाण लिन कुट्ट दुजण भयाण ॥९३
किह न गम्पि सुह-स
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घन्ता
एम मषि इन्दिय दुब्भेयहाँ गम्णुि पायें मुनि रहवेयहीँ । - विरत पर नियराक्क्रिय से सुन्दिन्दर- तुम दिवसक्किय ॥ ११॥
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तो रिशु मऍ विगयएँ सयले गुणस्य सायरेणं । सेणाणिय-सुरेण राम - चोहण किया हे ॥१५॥ शिम्मिड मिनिमाणु सचिण सुक्क रुखो | सम्पन्ते वसन्त मासें विरहि व सुद्ध सुक्खो ॥२॥ ओलग्गिड कु-पशु का फल अदिष्ण खाओ 1 किविणुस फुल्ल- परिषन्तु समक-काओ || ॥ सह-कलेवर जुअम्म हल थर्वेदि ण-किय खेबो | चाहइ पक्रिड़ वीज सिरुषहँ बीच देवी ॥ ४ ॥ शेष पाहाणे कमळ-उप्पल- - णिहाउ एकरो । पविरोध मन्याएँ पाणिड कियम्त अमरो ||५|| पुणु पीलइ बालुभाएँ वाण्ड डाइनामो । अस्य विरुद्धा ताई अवर मिनिऍविरामी ॥ ६ ॥ पण 'मो मी भयाण तुर्डे मूढ जिय-मणेणं । किं सलिलहाँ करहि हागि जर वरण- सिम्खणं ॥ ७ ॥ मायासहि पियर य-जुअले यवीयसीरे । पण वि कोणिउ होइ परिमन्थिए वि जीरे (१) ॥८ वालुअ-परिपीकपेण तेलादि कसो । इच्छय-फलु किं विगब्धि मायासु पर महन्तो' ||५||