________________
अट्ठासीमो संधि [२] इसी बीच, ये सब विन सुनकर और यह जानकर कि कुमार लक्ष्मण मृत्युको प्राप्त हो चुका है। तथा खरदूषण
और रावणकी शत्रता और शम्बूक कुमारका वैर मन में याद कर और यह जानकर कि राम शोकमें पड़कर समस्त सैनिक गतिविधियोंसे हट गये हैं, इन्द्रजीत और खरके पुत्र वहाँ आये | उन्होंने बड़े-बड़े विद्याधरों और नरयरोंको नियुक्त कर दिया ! आकाशमें इस प्रकार वगाली, ग्लाम आदि, बलइय,कृतान्त और धनुभाम आदि राजा आये। वे कह रहे थे, "लो आज हम कुमारका सिर काटते हैं, बहुत समयके बाद यह हवि मिली, जो इसने सूर्यहास तलवारपर अपना अधिकार किया और शम्यूक कुमारका विनाश किया, और खरदूषण और विशिरका वध किया, तथा अभयकुमार एवं रावण. के प्राणोंका अपहरण किया। और भी विविध स्थानोंपर प्रतिदिन लगातार महायुद्ध किया, अपनी बुद्धिसे उस सबको अपनी बुद्धिमें समझकर पूरा करूँगा ।।१-२||
[३] जब रामने सुना कि दुश्मन आ रहे हैं तो उन्होंने अपना वसावर्त धनुष तान लिया। रथमें चढ़कर भाईको गोदमें ले लिया। उन्होंने शत्रुसेनाको इस प्रकार देखा मानो यमने ही वेखा हो। इसी अन्तरालमें, जटायु और कृतान्त-वक्त्र दोनों जो चौथे माहेन्द्र स्वर्गमें देवता हुए थे, उनका तत्काल आसन कम्प हुआ। अवधिहानसे यह सब जानकर वे दोनों वहाँ आये । भक्तिसे भरे वे दोनों अपने स्वामीके गुणोंकी याद कर शीघ्र अयोध्या नगरी पहुंचे। उन्होंने देवताओंकी अनन्त सेना बना दी, जो मरो भागो मरो भागो' कहती हुई, यहाँ आयी। रामकी सेना देखकर शत्रुसेना भाग खड़ी हुई, मानो सिंहके दिशामें प्रवेश करते ही हरिण भाग खड़े हुए हों। बसमालीके साथ