________________
+
૦૨
तो नाव उ इयरु सुगेकि । खर- बूसण- रावण सम्भरेवि । परियार्णैव रहुवइ सोय - गहिद । सामरिस-र-णरवर- णिउत्त ।
हँ बजमालि-रव-समुह । 'मरु हिन्दुहुँ अजु कुमार-सीस् । जं इन खग्गु विरु सूरदासु 1 जं खर दूसरा-तिसरयहँ मरणु ।
Hafta
[२]
कच्छीहर-मरण मर्णे मुणेषि ॥१॥ सम्बुक-धहरु नियम घरेवि ॥ २ ॥ जीसेस सेण-वावार- रहिउ ॥३॥ आइये बहु इन्दद्द - सुन्द- पुप्तं ॥४॥ वइय-कियन्त- धणु-मीम- प्रभुह ॥५ बहु काल संभाजीसु ॥ ६॥ जं सम्बुकुमारों किं विषासु ॥७॥ किड अक्खम-रावण-पाण-दरणु ॥८॥
तो सुर्णेवि आप रिशु रावेण । रहें च वि वि उस भाइ । एथन्तरे जे माहिन्द पक्ष । सेतवर्णे आसण-कम्प होथि । गुणसुमरें विसामि भर्तित। विउषि सुरवर-बलु णन्तु । संप्रेक्ष हरिव खि पणटू । वो रणक्तु स-वक्षमाथि ।
धत्ता
जं बहु-ठाएँ हिँ अहँ अणुदिणु दिष्णु भणन्तरु बरु महा-रिशु सब बिमे विनिय बुद्धिऍ फेडहुँ अज्जु सब्बु सहुँ बिडिएँ ॥ ९ ॥
[*]
आयामिड वज्जावत्त ते ॥ १ ॥ जोइस परिवक्व जमेण णाइँ ॥ २४ सुर आ जाइ-कियन्तवत् ॥१३॥ अवहिऍ परियाबि आय के वि ||४|| सम्पाइय उज्झाउरि तुरन्त ||५|| 'मह वहाँ बहों को 'भणन्तु ||६ लङ्घन्ति दिसउ णं हरिण रुटु ॥७॥ 'बुद्धको वण पावद्द किय-वाहि ॥