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अठासीवी सन्धि
उस अवसरपर सिरसे प्रणाम कर प्रायः सभी सामन्तोंने रामसे निवेदन किया-"हे परमेश्वर, आप शोक दूर कीजिए, और कुमार का दाना करिश
[५] ये शब्द सुन कर रामने कहा, "अपने स्वजनोंके साथ तुम जल जाओ। तुम्हारे माँ-बाप जलें, मेरा भाई तो चिरंजीवी है । लक्ष्मणको लेकर मैं वहाँ जाता हूँ जहाँ दुष्टोंके ये वचन सुनने में न आयें।' यह कहकर रामने लक्ष्मणको चूमा और प्रलाप करते हुए अपने कन्धोंपर उन्हें रख लिया । वहाँसे राम दूसरे स्थानपर चले गये। फिर तुरन्त स्नानघर में प्रवेश किया। वहाँ जाकर उन्होंने कहा, "भाई जागो, कितना और सोओगे, नहानेका समय जा रहा है, तुम नहीं देखते हो क्या ? फिर रामने भाईको स्नानपीठपर बैठाया और नौ उत्तम स्वर्ण-कलशोंसे उसका अभिषेक किया। उसके बाद उसे मणि और रत्नोंके गहनोंसे विभूषित किया। वे गहने सूर्य और चन्द्रमाके समान तेजवाले थे। फिर रामने रसाइएसे कहा, "कुमारकी भोजनविधि शीन सम्पादित करो।” रसोइएने बड़ी सी सोनेकी थाली लगा दी। राम अपने मन में इतने मुग्ध थे कि उसके मुंहमें कौर खिलाने लगे। परन्तु लक्ष्मण न तो कुछ चाहता और न कुछ देखता। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार, अमव्य और मूर्ख जीव, जिन भगवान्के वचन नहीं सुनता । यह और इस प्रकार दूसरी और बातें राम करते रहे, अपने कन्धोंपर कुमार दक्ष्मणका शव वह ढोते फिरे । भाईके वियोगमें वह बहुत दुबले-पतले हो गये। रामका इसी प्रकार आधा बरस बीत गया ॥१-.२।।