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[८८. अट्टासीमो संधि ]
तहि अवसर सिरसा पणवन्ते हि बलु विष्णविउ सयल-सामन्तें हिं । 'परमेसर उपसोह समारहों लच्छीहर-कुमार संचारहों' ॥ध्रुधक।
[.] पमणइ सोराबहु इय घय हि। 'Heid हि स ग सय में । दज्म' माष-पप्पु-तुम्हारउ । होउ चिराउसु मात्र महारउ ॥१२॥ उहि जाहुँ लकवाग लहु तेतहैं। स्वल-वयण सुध्वन्ति णबेतहें ॥३॥ एवं वधि चुम्बै वि आला वि। पासएड जिय-सन्धैं चहा वि ॥७॥ गड़ बलएड अण्णु थाणन्तरु! पाल तुरन्तु पवर-माणहरु ॥५॥ 'भाइ षिवज्झहि केसिउ सोबहि। पहाण-वेल परिल्हसिय ण जोयहि ॥ पुणु पोटोपरि थवि णपम्हें हि। अहिसिष्ट वर-कश्यण-कुम्मे हि ॥७॥ पुणु भूसह मणि-रयणाहरणे !ि ससहर-सवण-नेय-अपहरणों हिं hall पुणु चोलह समाण सूयारहों। 'मोयण-विहि राहु काहाँ कुमारहाँ' तेण वि विस्थारिट सरि-परिचालु । देइ पिण्ड मुहें मणे मोहिउ बलु १० ण वि अहिलसइ ण पेक्ष लक्रष्णु। जिण-क्यणु व अ-मम्बु अ-त्रियकवणु११
पत्ता तहाँ भाय। अवर वि करन्तहों णिय-सम्धे हरि-मरउ वहन्नहीं। माह-विभोय-जाय-भा-खामही अक्षु वरिसु घोठीणउ रामहीं ॥२