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________________ पठमचरित म वि एकहाँ एयहाँ भन्तकरणु। सम्बडा विजणही जर-जम्म-मरण ।।३।। बीबहो मव-गहणे का वि मन्ति | पलई सरीर होन्ति जन्ति ॥४॥ अप्पत्ति जेत्र सिद्ध इति । मह काम करतात . कइड वि अम्हे हि सम्हहि पर्व। पहुगमणु करवड ए जेव ॥१॥ जह जीव-रासि आवह ण जाइ। तो मेइणि-मण्डले कथु माइ ॥७॥ जा मरणु नाहि भो रामयन्द। तो कहिं गय कुलयर जिणधरिम्द॥८॥ कहि मरह-पमुह बकवह पवर । कहिण-कण्ड-बकएव अवर ॥९॥ . पत्ता एड जाणे वि सयफागम-कुसळ वयण महार मणे पाहि । शायहि सयम्भु सइलोक-गुरु दुहु दु-कलतु व परिहहि ॥१०॥ इथ पोमचरिय-सेसे विहुभ सयम्भु-हए वन्दइ-आसिय-करायपोमचरियस्स सेसे सयम्भुपवस्स कह बि उम्परिए । हरि-भरणं णाम पम्यमिणं ॥ सणय-विहुभप-सपम्भु-णिम्मविए । सत्तासीमो इमो सग्यो । तिहुअण-सयम्भु णवरं एको कहराय-बहिणुप्पण्णो । पउमचरियस्स चूलामणिय सेसं कयं जेण ॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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