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पवमचरिङ
स- विराट्रिय गवय-गम- कणय ॥19 दहिमुह - सुसे - जम्बच समुह ॥४॥ मयम-रम्स दिवस यर ओति ॥५॥ सुहिणाहय-कमल- विषण्णणायण ॥ ६ ॥
सयल वि अंशुअ-जल-मरिय-यण
वलवहाँ चलहिं पडिय केंवें । तइलोक गुरु मित्राण जेवें ॥ ७ ॥
ससिषण तार-तर-जणय | कोलाहल - इन्द्र महिन्द कुग्द | समिकरणळ-पांख-पसण्णकिति ।
घचा
अक्लोइड पुणु असहन्स ऍहिँ काहि सम्पत्तु र 1 विगय-पहु दर षोणल-सिरु णं किउ केण विलेम || ||
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संगिऍवि सुमिला तण तेहि । 'हा हा काळ हाण-पाल । हा हा करूँ पेस किं पिणा । हा हा जण-मण-जणियाशुराय ।
हा सामिय जय - सिरि-निवास हा हा सामिय सच्चोवयारि । हा सामिय तु दम- रिशु इमेण
कहें कि उ जन्तु तुझु ।
श्राहाविज वर - विवाहरेडिं ॥१॥ अइ-दूरीहू सामिसाल ||२|| हा बजाय अम्इँ अवाह || ३ || कहें को पेसेसह बहु- पसाय ||४|| पइँ विणुण षिं राहब जीवियास 114 || हा हा बरहरावत-वारि ॥ ६ ॥ परिमुज्झह ण वि एक्के मत्रेण 113H जे मुवि जाहि णकन्तु गुज् ॥८॥
।
घत्ता
दम- दिसि काउ सुरवर कि
कलुमा णरवरहँ बणसउ उ मह - जलहि गिरि शेवादिय पर बिसहर वि ||९||
अप्प सन्धवि विडीसणेण । 'परिसहि देव महन्तु सोड ।
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तेण ॥१॥
पुणु
पद्मणि सहवचन्द्र
काण व विभोर ॥ २ ॥