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________________ सत्तासीमो संधि . - . -- सान्त्वना दो । जिस घकसे तुमने शत्रुसमूहका अन्त किया, भला वह यम चक्रको कैसे सहन कर सका ? हा अब क्या करूँ, कहाँ जाऊँ, ऐसा एक भी प्रदेश नहीं जहाँ जाकर सुख प्राप्त कर सकू। भाईका वियोग रामको जितना सता रहा था, उतना विषम न तो विष था और न दुर्जन समूह । भीष्म-कालका प्रखर सूर्य भी उतना विपम नहीं था और न ही जलती हुई आग । हा, अब तो अयोध्या नगरका खम्मा ही टूटकर गिर गया । इक्ष्वाकु वंशका समुद्र आज सूख गया। राम लक्ष्मणका आलिंगन करते, 'घूमते और कभी पोंछते, और फिर गोद में लेकर रोने बैठ जाते। लक्ष्मण प्राण छोड़ चुके थे, परन्तु राम तब भी स्नेह छोड़ने को तैयार नहीं थे ।।१-९॥ [१५] वे लक्ष्मण के गुण.समूह की याद करते, और बारबार रोते। उनके साथ समस्त अयोध्यावासी रो पड़े। अपगजिता और सुप्रभा तो खूब रोयीं। विशल्या सुन्दरी भी खूब रोयी, विशल्याकी तरह गुणमाला भी खूब रोयी, रतनचूला और वनमाला भी रोयीं, उसी प्रकार कल्याणमाला और नागमाला भी खूब रोयी, सत्यश्री, जयश्री और सोमा रोयी, दधिमुखकी पुत्री गुणवती और जितप्रभा भी रोयी, कमलनयना, शशिमुखी, शशिवर्धना और सिंहोदर की लड़कियाँ भी रोयीं। भाग्यके वशसे लक्ष्मणके अनेक बन्धु-बान्धव और स्वजन, अत्यन्त दीन स्वरमें रो रहे थे। जिसके वियोगमैं स्वयं जयश्री और लक्ष्मी मुक्तस्वरमें रो रही थीं, उस अयोध्या नगरीमें कौन ऐसा था जो फूट-फूटकर न रो रहा हो ॥१-८॥ । [१६] यह बात दशों विशाओंमें फैल गयी। शीघ्र ही विद्याधरोंको यह मालूम हो गया। सभी अपने पुत्रों और पत्नियों के साथ आये | सुप्रीव, विभीषण, सिंहनाथ, शशिवर्धन,
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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