SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२ परामचरित घत्ता सत्ति अरिदमण-णशहिवहीं पञ्च पविमोवि स समरें। पई घिणु लक्षण खमअलिहें कहाँ सम्गह जियपउम करें ॥९॥ [1] हा लक्षण पई विशु गुणहराहूँ। उसगा हरइ को मुणिवराहूँ ॥३॥ पर रिणु अ-किलंस भुवणे कास। करें लग्गा असिषरु सूरदासु ॥३॥ पई विशु को ईलएँ गरुअ-धीरु। चिणिवायई सम्वुकुमार वीरु ॥३॥ पई विणु संदर्भिसय पहु-वियारु । को परिषाणइ चन्दा दारु ॥४॥ पई विणु को जीवित रह साहै। तीहि मि तिसिरय-पर-दूषणाई ।। पई विणु को धारइ पमय-साधु । का कोहि-सिलुरगहुँ समाथु ।।३।। पइँ विशु लङ्का-जयरिद समावें। को निगइ हंसरह हंस-बीये ॥७॥ पई विणु को इन्दइ घरइ माद। को रावण-ससिएँ समुह थाइ ॥४॥ पई विशु कहाँ आप किय-विसल । दिवसयर अशुटुम्लएँ विसच ॥९॥ पई विणु उप्पाइ कहाँ रहनु। को दरिसइ बहुरूपिणि मगु ॥॥ पर विणु कियन्तु को रावणासु। को सिप-दायारु विहौसणासु ॥३३॥ घत्ता पर विणु मणि महु माइणर को मेकावइ पिय-परिणि । पाळेसइ गिह णिरुवाविय को ति-खण्ड-मणिय धरणि ॥१२॥ [१४] हा तवहीं विगय महु पुप्त वे मि। सपछीहर गम्पिणु भाउ लेवि ॥१॥ हा मुगू मार लड्डु पालिक। बदमणगार-मुणिन्द बेड ॥२॥ हा कि म उरि पण? णेहु। हा जणु संथवहि रूपम्तु पहु॥३॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy