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परामचरित
घत्ता सत्ति अरिदमण-णशहिवहीं पञ्च पविमोवि स समरें। पई घिणु लक्षण खमअलिहें कहाँ सम्गह जियपउम करें ॥९॥
[1] हा लक्षण पई विशु गुणहराहूँ। उसगा हरइ को मुणिवराहूँ ॥३॥ पर रिणु अ-किलंस भुवणे कास। करें लग्गा असिषरु सूरदासु ॥३॥ पई विशु को ईलएँ गरुअ-धीरु। चिणिवायई सम्वुकुमार वीरु ॥३॥ पई विणु संदर्भिसय पहु-वियारु । को परिषाणइ चन्दा दारु ॥४॥ पई विणु को जीवित रह साहै। तीहि मि तिसिरय-पर-दूषणाई ।। पई विणु को धारइ पमय-साधु । का कोहि-सिलुरगहुँ समाथु ।।३।। पइँ विशु लङ्का-जयरिद समावें। को निगइ हंसरह हंस-बीये ॥७॥ पई विणु को इन्दइ घरइ माद। को रावण-ससिएँ समुह थाइ ॥४॥ पई विशु कहाँ आप किय-विसल । दिवसयर अशुटुम्लएँ विसच ॥९॥ पई विणु उप्पाइ कहाँ रहनु। को दरिसइ बहुरूपिणि मगु ॥॥ पर विणु कियन्तु को रावणासु। को सिप-दायारु विहौसणासु ॥३३॥
घत्ता पर विणु मणि महु माइणर को मेकावइ पिय-परिणि । पाळेसइ गिह णिरुवाविय को ति-खण्ड-मणिय धरणि ॥१२॥
[१४] हा तवहीं विगय महु पुप्त वे मि। सपछीहर गम्पिणु भाउ लेवि ॥१॥ हा मुगू मार लड्डु पालिक। बदमणगार-मुणिन्द बेड ॥२॥ हा कि म उरि पण? णेहु। हा जणु संथवहि रूपम्तु पहु॥३॥