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________________ सत्तासीमो संधि [११] इतनेमें लक्ष्मणको माँ सुमित्रा रो पड़ीं। उसके गुणोंकी याद कर वह दहाड़ मारकर रोने लगीं, “हे पुत्र, तुम कहाँ चले गये। हा, आज तुम्हारा मुख फीका क्यों है, अभी मैंने दरबार में देखा था, अभी-अभी तुम बात कर रहे थे। मुझे यह देखकर अचम्भा हो रहा है। आज तुमने मेरा नाम लक्ष्मणसे शून्य बना दिया । हे पुत्र, हे पुत्र, क्या तुम सीताधिप रामसे अब विरक्त हो गये । जिससे तुम उन्हें अकेला छोड़कर चल दिये । यह तुमने बहुत बुरी बात ही " इसी अनाभि में दीय लवण और अंकुशने जम यह बात सुनी, तो वे सहन नहीं कर सके। यह जानकर कि देव और जीवन' दोनों चंचल हैं, उन दोनोंने रामके चरणकमलोंकी वन्दना की। वे दोनों जिनमन्दिर में गये, जहाँ पर भवभय दूर करनेवाले अमृतसर महामुनि थे। वहाँ उन्होंने कैकेयीके पुत्रोंके साथ दीक्षा ग्रहण कर ली ॥ १-९॥ [१२] एक ओर लक्ष्मण की मृत्यु, और दूसरी ओर अंकुश का वियोग । आदमी एकसे ही मूच्छित हो जाता है, फिर यों दुःख आ पड़नेपर क्या पूछना। भाईको देखकर रामका शोक बढ़ गया, वे फूट-फूटकर रोने लगे-“लक्षणोंसे अफित हे लक्ष्मण, देखो किस प्रकार मेरे पुत्रोंने दीक्षा ले ली। अब कौन तुम्हारे बिना मेरा गमन साधेगा, कौन सिंहोदरको युद्धमें बाँधेगा, तुम्हारे विना कौन अब हमारी आज्ञा निभायेगा, राजा वाकर्ण को सहारा देगा । तुम्हारे बिना अब कौन बालखिल्यको ढाढस वेगा और रुद्रभूतिका प्रतिकार करेगा। तुम्हारे बिना अब कौन राजाओंको पकड़ेगा और दुर्द्धर राखा अनन्तवीर्यको अपने वश में करेगा। राजा
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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