________________
२१.
परमवरित
[1] तो हरि-मायरि सुमिति समा गुण सुमरे वि गरब पाद मुबह ॥ १॥ 'हा घुस पुत कहिं गयउ तुहुँ। हायिक विग्छामट' काइँ मुडु ॥६॥ हा मई अस्थाणे णिमरिछयड । एवहिजे चवन्तर अच्छियड Ain हा काई जाड ऍउ अच्छरिठ। में महु मिलावण णामु किन ॥५ हा पुत्त पुप्त सीयाहवहाँ। कि मणे णिविण्णउ राहवहाँ ५|| एकलाड विजेण गडाहा पुत्त अनुत्तर एग तह १६॥ एस्थरता सुणे चि महाउसे हि असहन्त हि दुहु छवणी हि परियाणेवि जीविड देहु चलु। जयकारें वि रामहाँ पप-जुलनु IIOR
धत्ता गम्पिणु निणहरु अहि अमियसा णिवसइ मुणि भव-भय-हरणु । कइषय-कुमार-णरवरेंहि सहुँ वीहि मि छाइयउ तव-परण १॥
[२] फकीहर-मरण एकत्तहि। रूषणस-विनोउ मपणेतहि ॥१॥ एकेण जि खगेण मुच्छिमाह। विहि दुहेहिं पुणु किं पुषिका ॥२॥ भाह गिऍचि परिवदिय-मलहरु । पुणु घि पुशुविधाहावह बलास
हा समषण लक्षण-लक्सकिय । पेक्यु केम महुसुम दिक्षतिप ।।। पई वि५ को म स ग स-धई । को मीहोयस समर बिम्बा ॥५॥ पर विणु को महु पेसण सारह। बजपणु णायक साहारा पई विण वालिखित को पारम् । कोसं कामुचि विनिवार ।। पर विणु को मना धरणीधा धामणम्वनीको दुवर