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संधि
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अरिदमनकी पाँचों शक्तियों को युद्धमें स्वयं झेलकर, अब कौन क्षेमांजलीपुरकी जितप्रभाको अपने हाथ में लेगा ।। १-२ ।।
[१३] हे लक्ष्मण, तुम्हारे बिना गुणधर मुनिवरों का उपसर्ग अब कौन दूर करेगा अब दुनिया में तुम्हारे बिना सूर्यहाए तर बिना कट किसके पास जायगी ? तुम्हारे बिना अब कौन वीर शम्बुकुमारको खेल-खेल में मार गिरायेगा ! तुम्हारे विना अब कौन विकारोंका प्रदर्शन करती हुई चन्द्रनखाको पहचान सकेगा ? तुम्हारे बिना अब कौन खर-दूषण और त्रिशिरका जीवन अपहरण करेगा ? प्रमदाओंके समूह को तुम्हारे विना अब कौन समझाएगा ? अब कौन कोटिशिला उठायेगा ? और अब तुम्हारे बिना लंकाके निकट स्थित हंस द्वीप और उसके राजा हंसरथको जीतेगा ? हे भाई, तुम्हारे बिना अब इन्द्रजीत को कौन पकड़ेगा ? और रावणकी शक्तिका सामना कौन कर सकेगा ? शल्य दूर करनेवाली विशल्या, तुम्हारे विना सूर्योदयके पहले अब किसके पास आयेगी ? तुम्हारे बिना चक्ररत्न अब किसे उपलब्ध होगा ? और कौन बहुरूपिणी विद्याका नाश करेगा ? तुम्हारे बिना अब कौन रावणका यम बनेगा और विभीषण के लिए सम्पत्तिका दान करेगा ? तुम्हारे बिना अब कौन है जो मेरी मनचाही पत्नी सीतादेवी से भेंट करायेगा ? कौन अब तीन खण्ड धरतीका निर्विघ्न परिपालन करेगा ? ।। १-१२ ॥
[१४] अरे मेरे दोनों पुत्र भी तप करने चले गये । लक्ष्मण, तुम जरूर उन्हें लौटा लाओ। यह ईर्ष्या छोड़ो और धरतीका पालन करो। मुनि बननेका समय है। क्या मुझपर तुम्हारा नेह नष्ट हो गया है। अरे, रोते हुए इन लोगों को