SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पडमचरित णं रवि-स्तुप्पल तोहणस्थ । णं धर पसारिय उदय हस्थ ॥१॥ पत्ता लकेसर-लक्षण उत्थरिय बेपाल-सहास, णश्चियइँ पलय-जलय-गम्भीर-रव । 'जह पर होसह मज धद।।१०11 [१५] ॥दुईं।। जं कि रावण संतुहु मि करेसहि भूमि-गायरा' । दह दाहिण-करहिं दह-वयणे दह कळिय महा-सरा ||३|| पहिलेण पवर जग्गोह-रुक्षु । वीएण महग्गिरि दिण्ण-दुक्खु ।।२।। जल तइपं जलगु चउस्थएण। पज्ञमण सीड फणि छटएण ||३३ सतमण मस-मायग-कीलु । अट्ठमण णिसायह विसम-सी ।।३।। पवमेण महन्तु महन्धयारु ! दहमण महोवहि-हस्थियार ||५|| दस दिन्च महा-सर पलय-माय । दस दिसउणिरुम्मे विठन्ति जाय॥६॥ तो लकखणु वुत्तु विहीसणेण । 'दिग्वत्थई लक्ष्य है रावणेण ॥७॥ एक जै होइ अणेय-माय । एकपाले दरिसह विविध माय ! एक जै अगु जगवि समत्थु । लइ एहएँ अवसर वाहि हत्थु ॥१॥ जई आयई पई णिवारियई तोगविहउँण विनुहुँ रामुणषि धत्ता मायामप्पिणु भुभ-जुभलु । ण वि सुग्गीड ण पमप-बल' ॥१०॥ ।। दुबई ॥ तो लच्छीहरंण तरु उजाइ हुभयह-तुणा- फर्ण । माया-महिहरो वि मुसुमूरिट दारुण बज्ज-दपणे ॥१॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy