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पचरित
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तथा उपलब्धियों एवं पञ्मचरित्र का एक सर्वागीण अध्ययन- इसके स्रोत, व्याकरण सम्बन्धी विशेषताएँ, छन्द तथा विषयसूची प्रस्तुत की गयी है। सम्पूर्ण शब्दावली भी दी गयी है। विषयसूची तथा छन्दों की व्याख्या प्रत्येक भाग के साथ ही है। तीसरे भाग की प्रस्तावना में डॉ. मायागी ने छन्दों का अध्ययन स्वयम्भु की दूसरी कृति रिट्णेमिचरिउ से किया है। उसमें उन्होंने स्वयम्भू के समय तथा कृतियों विषयक अपनी पूर्व सामग्री पर और -अधिक प्रकाश डाला है। जो भी स्वयम्भू और उनको कृतियों का अध्ययन करना चाहे, उनसे अनुरोध है कि वे डॉ. भायागी की विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना अवश्य पढ़ें। कुछ अन्य अतिरिक्त संदर्भों के लिए देखें- डॉ. एच. एल. जैन स्वयम्भू एण्ड हि पाए नागपुर टी जरनल म- नागपुर 1935 एच्.डी. वेलणकर- स्वयम्भूछन्दाज बाई स्वयम्भू, जरनल ऑव द बाम्बे ब्रांच रॉयल एशियाटिक सोसाइटी, एन.एस. वॉल्यूम - 1, पेज 88 एफ-एफ, बम्बई 1935 एन. प्रेमी महाकवि स्वयम्भू और त्रिभुवन स्वयम्भू : जैन साहित्य और इतिहास, पृष्ठ 370, बम्बई 1942, एच. कोछड़ अपभ्रंश साहित्य पृष्ठ 51, दिल्ली 1956 1
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स्वयम्भू मायदेव या मारुतदेव तथा पद्मिनी के पुत्र थे। इस परिवार में अध्ययन की परम्परा थी। उनकी दो पत्नियाँ थीं अमृताम्बा और आदित्याम्बा, जिन्होंने उनकी साहित्यिक प्रवृत्तियों में उनका सहयोग किया, जिनके लिए उनके मन में पूर्ण अभ्यर्धना है । सम्भवतया उनकी तीसरी पत्नी भी थी। उनके कृतित्व से हमें ज्ञात होता है कि वे एक विलक्षण प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी शारीरिक स्थिति का एक चित्रण दिया है। उनका शरीर दुबला, नाक चिपटी, दाँत बिखरे हुए तथा ओट लम्बे थे। उनके कई पुत्र थे, किन्तु उनमें से केवल त्रिभुवन ने ही पैत्रिक काव्यप्रतिभा को पाया तथा अपने परिवार की परम्परागत उच्च बौद्धिकता को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने कतिपय संरक्षकों-धनंजय तथा धवलैय्या का उल्लेख किया है। उनके द्वारा निर्दिष्ट व्यक्तिगत नाम से प्रतीत होता है कि वे तेलुगु कन्नड़ क्षेत्र में रहे थे। सम्भवतया में यापनीय