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________________ प्रधान सम्पादकीय (प्रथम संस्करण : 19700 स्वयम्भूकृत अपभ्रंश पउमचरिउ श्री देवेन्द्रकुमार जैन के हिन्दी अनुवाद के साथ ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी जैन ग्रन्थमाला में प्रकाशन के लिए लगभग पन्द्रह वर्ष पूर्व लिया गया था। प्रथम भाग विद्याधर-काण्ड (20 सन्धि) 1957 में प्रकाशित हुआ; द्वितीय भाग अयोध्याकाण्ड 21 से 42 सन्धि तक तथा तृतीय भाग सुन्दरकाण्ड (43 से 56 सन्धि) 1958 में। और अब 1969-70 में चतर्थ भाग (57 से 74 सन्धि) तथा पंचम भाग (75 से 90 सन्धि) अर्थात् युद्धकाण्ड (75 से 77) तथा उत्तरकाण्ड (78 से 90) उसी प्रकार प्रकाशित हो रहे हैं। यह महाकाव्य स्वयम्भू द्वारा आरम्भ हुआ तथा उनके पुत्र त्रिभुवन द्वारा पूर्ण हुआ। इसके समालोचनात्मक संस्करण का तीन पाण्इलिपियों की सहायता से डॉ. एच.सी. भायाणी ने विभिन्न पाठभेदों तथा टिप्पणों के साथ सिंधी जैन सीरीज, संख्या 34-36, बम्बई 1452-62 में विद्वत्तापूर्वक सम्पादन किया है। इस संस्करण में प्रथम भाग में प्रस्तावना दी गयी है, जिसके अन्तर्गत स्वयम्भ का समय तथा व्यक्तिगत परिचय, उनकी कृतियाँ
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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