SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रधान सम्पादकीय (xi) संघ के थे, जैसा कि पुष्पदन्त के महापुराण की टिप्पणी में उल्लेख मिलता है। उन्होंने ज्ञान की विविध शाखाओं का अध्ययन किया था और उनका दृष्टिकोण विशाल था। वे 677 और 960 ईसवी, प्रत्युत अधिक सम्भव है कि 840 और 920 ईसवी के मध्य हार। वह तिथि इससे अनमित होती है कि उन्होंने रविषेण तथा जिनसेन का उल्लेख किया है। तथा स्वयं उनका उल्लेख पुष्पदन्त ने किया है। स्वयम्भू की कृतियाँ हैं-पउमचरिउ, रिट्ठणेमिथरिउ, स्वयम्भूछन्ट तथा एक स्तोत्र । पटमचरित की 84 सन्धियाँ स्वयम्भू ने लिखी तथा शेष उनके पुत्र त्रिभुवन ने पूर्ण की, जिसने अपने पिता का सम्माननीय शब्दों में विवश्य दिया है। संयम्भू के दोनों भहाकाव्यां की बहुलेखकता सूक्ष्म अध्ययन का एक संचिकर विषय है। पउमचरित के स्रोतों के सन्दर्भ में रविपेण के संस्कृत पद्मपुराण तथा चतुर्मुख की कतिपय अपभ्रंश कृतियों का, जो अभी तक प्रकाश में नहीं आयीं, उपल्लेख अवश्य किया जाना चाहिए। स्वयम्भू की कृतियों अपभ्रंश साहित्य की श्रेष्ठतम कुतियां हैं : समकालीन पुष्पदन्त जैसे उच्चकोटि के ग्रन्थकार ने उनका आदर के साथ उल्लेख किया है। हम डॉ. एच.सी. भायाणी के अत्यधिक ऋणी हैं कि उन्होंने सम्पूर्ण मूल पामचरित का समालोचनात्मक संस्करण तथा लेखक का विस्तृत अध्ययन हमें दिया । और यह भी उनकी तथा उनके प्रकाशक को कृपा है कि उन्होंने हमें अपने मूल को इस संस्करण में देने की अनमति दी। डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन ने इसके हिन्दी अनुवाद करने में कठिन परिश्रय किया है, जो अनुवाद स्वयम्भू-त्रिभुवन के अध्ययन की ओर और अधिक पाठकों का ध्यान आकर्षित करेगा। हिन्दी के विद्वान्, हिन्दी तथा अन्य आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं तथा उनकी विविध काव्यविधाओं को समझने के लिए अपभ्रश के अध्ययन का महत्त्व अनुभव करने में नहीं भूलंगे। हम डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन के आभारी हैं।
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy