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पचमचरेिड
सम्बर ( १ ) विरामै ससि वयण छाउ । निरुणिच्च सिकि परिहरिय कार्ड ३
काकुत्थु चिन्तइ रणे दुसझ तें कवि आर वि गणइ । सिविपणि 'सुन्दरच्छ कहें काहूँ थिग्रड फट्टमड नाइँ' । अवोइड पुणु सचि सरीरु |
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जिह तहबरु छिण्णउ मूर्ले ति मरु-हार-गीर-चन्दन- जले हिं
उडि सोमारू रहु-तगउ । तं भाउ निपुषि स-जेवण । 'हा पाह आउ स दास रहि । हा माहत्थाणु समागयहूँ । हा गाइ पण्ण-चित्तु हवहि । एस्थन्तरे विणि वि आइयउ । 'हा सण पुत्त' मणम्सियउ । सिंह भाउ खार्थे सत्तुहणु ।
'मंड कच्छीहरु कुह मज्छु ||४|| शविकाई वि अम्मुस्याणु कुशड़' ॥५ किं मदु आला ण देहि वच्छ ॥ ५॥ परियाणिव चिन्हें हि मुअब माइ ॥७॥ मुच्छावित खर्णे वलए बीरु ||८||
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घचा
महिहें परि णिच्चेयगड । हुउ कह कह कि स-वेयणउ ॥ ९ ॥
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वहु-वाह-पिडिय दीणागण ||१|| वाहावि हरि अन्तेरें ||२|| किं लोहासों ण ओवरहि ||३|| सम्माणु करहि परवर-सयहँ ||४|| नियमित रुक्षन्ति संथव हि ||५|| सुप्पर-सुमिप्ति-अवराइयब ||६|| अप्प करयल हि इन्तिय ॥७॥ विडिव हरि च हिंत्रिमण-मशु ८
घत्ता
हा हा मायरिशिय-मापरि
धीरहि सोयाउण्णियज ।
पहूँ विणु ध्रुवु जाय अनु महु दिसत असेस सुण्डि ||९||