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सत्तासमी संधि
मानो लक्ष्मण अपनी देह से रूठकर चले गये । सुन्दर खो खम्भोंसे टिके हुए विशाल सिंहासनपर वह गिर पड़े। खुली हुई आँखें ! एकदम अडोल शरीर ! मानो लक्ष्मण मूर्तिके बने हो।" उसे देखकर वे दोनों देवता विषण्ण मन होकर अपने आपको बुरा-भला कहने लगे। वे बहुत शर्मिन्दा हुए। उन्होंने बहुतेरा पश्चात्ताप किया। वे दोनों शीघ्र ही सौधर्म स्वर्गके लिए चल दिये । देवमायासे अपने प्रियका अनिष्ट हुआ जान - कर, लक्ष्मणकी स्त्रियाँ प्रणयकोपसे भर उठीं। स्नेहमयी उन सबने विलाप करना शुरू कर दिया ||१८||
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[4] तब आकुलमन सत्तरह हजार सुन्दरियाँ शबके पास पहुँची। उनमें से कोई प्रणयवतो प्रेम भावसे बोली, "हे देव कहो, किसने तुम्हें कुद्ध किया है, कुबुद्धिसे मैंने तुम्हारा यदि अपराध किया है, हे देव वह सब मेरे लिए क्षमा कर दीजिए !" कोई सद्भावसे उसके सम्मुख नृत्य करने लगी । कोई प्रियके चरणोंपर गिर पड़ी। कोई सुन्दर वीणा वाद्य बजा रही थी । कोई विविध भेदोंवाला गन्धवं गा रही थी। कोई स्नेहसे भरकर आलिंगन कर रही थी। कोई सुकुमार शरीर और गालोंको चूम रही थी। कोई फूलोंको सिरपर रखती, और शेर बनाकर सन्तोषका अनुभव करती । कोई चन्दन चर्चित मुख देखकर हाथ उठाकर अपनी अँगुलियाँ चटका रही थी। इस प्रकार वे युवतियों तरह-तरह की चेष्टाएँ कर ही रही थीं, पर सब व्यर्थ, ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार समस्त वैभव, कंजूसके पास व्यर्थ जाता है ! ॥१२॥
[९] जब रामने यह समाचार सुना तो प्रसिद्धनाम बद्द सहसा वहाँ आये जहाँ कुमार लक्ष्मण थे, वहाँ आकर बैठ गये। बहुत सी पत्नियोंके बीच उन्होंने अपने भाईको देखा !