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पडमचरित हुँ वाया कि गिर। इति वहाँ रवि गयउ ॥३॥ वर-जाबरूव खम्भासियउ। सीहासण विस्थिपण' थियउ ॥l भ-णिमोलिय लायणु पद्ध-तण | लेप्पम उ णा घिउ महुमहण ॥५॥ तं परवि सुरवर वे विजण। अप्पर गिन्दन्ति विसपण-मण ॥१॥ अइलजिय परछाताप-कय। सोहम्म-सगु सहसति गय ॥७॥
घसा सुरवर मायएँ चिउरश्चियउ परियाणे वि हरि-गेहि णिहिं । श्रावस्तु पणय-कुवियर करें वि सम्वहि सुट्ट सणेहिगिहि ॥८॥
[] घो पार्से दुक आउल-मणा। सत्तारह सहस-वरङ्गणाइँ ll कवि पणइणि पगएं मणइ एव । 'रोसाविउ कवणे अक्खु देव ॥२।। जो कु-मइ किड अबराह तुज । सो सयस्लु वि एकसि खमहि मस' । सटमा अग्गएँ का वि गडई। कवि दइयाँ चलणा-पलेहि पन्ह ।।। क विमणहरु चीणा-पशु चाह । कवि विविह-मेड गम्धचु गाइ॥५॥ कवि आलिम पिरमर-सणेह। चुम्बा कवोल सोमाल-देह ॥६॥ कवि कुसुमई सीसे समुद्धरेनि। तोसाव सिरे सेहरिकरेवि ।। कवि मुहु जो वि मलियनवा । उढावद किय-कर-साह-भा॥
पत्ता अण्णाद वि चेट्टड बहु-बिहउ जुहहिं जाउ जाउ कियउ । जिह किविण-लो सिय-सम्पयउ सध्व गयउ गिरस्थयउ ।। ५॥
[१] तो ऍह बात णिसुणेविण राम्। सहसत्ति पाड जगें णाय-णामु ।।१।। लक्षणु कुमार जहि तहि पइ टु । बहु-पियाँ मनमें णिय-भाइ दिडु २