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सत्तासीमो संधि कैसे भूल जायगा, यह भी कैसे भूल सकता है जो वनमें उसके साथ धूमता फिरा । उस महान भयंकर युद्धको कैसे भूल सकता है कि जिसमें त्रिशिर और खर दूषणका संहार हुआ। युद्धमें उसके प्रहारको राम कैसे भूल सकते हैं ? उसने जो इन्द्रजीतको विरथ कर पकड़ा था, उसे वह कैसे भूल सकता है। उसका यह आवेझमें लड़ना वह कैसे भूल सकते हैं: राषणका सिरकमल तोड़ना भी वह कैसे भूल सकते हैं। लक्ष्मणके और भी दूसरे बहुतसे उपकार हैं, उन्हें राम कैसे भूल सकते हैं यदि तुम्हारी प्रति उपकारकी भावना है, तो लेइके वशीभूत क्यों बनाते हो ? ॥१-१०॥
[६] इन्द्रको यह सब कहते सुनकर, यह जानकर कि वह रामका अनन्य मित्र है, सभी देवता सुन्दरवेश में इन्द्रकी जय बोलकर अपने-अपने आवासोंको लौट गये । केवल वहाँपर दो देव बचे, विषयसे भरे वे चले किसी भी तरह लक्ष्मणका विनाश करने के लिए। उन्होंने सोचा, चलो देखें कि 'लक्ष्मण मर गया' यह सुनकर राम क्या करते हैं. क्या रोते हैं ? अथवा क्या शब्द कहते हैं ? उठकर कहाँ कैसे जाते हैं ! शोकमें उनका मुख कैसा होता है ? अन्तःपुरमें कैसा दुख होता है। यह वचन कहकर रत्नचूड़ नामका देवता, और दूसरे अमृतचूलने तुरन्त निश्चित कर लिया। उन्होंने कूच किया, और एक पलमें अयोध्या नगरी जा पहुँचे! रामके प्रासादमें देवताओंने मायामय महाकरण यह शब्द किया "हा रामचन्द्र मर गये"। यह सुनते ही युवतियोंका समूह डाढ़ मारकर रो पड़ा । ॥१-९||
[७] जब रामकी मृत्युका शब्द सुमित्रासुत लक्ष्मणने सुना तो वह कह उठे, "अरे रामके क्या हो गया," वह आधा ही बोल पाये थे कि शब्दोंके साथ उनके प्राण पखेरू उड़ गये,